दैनिक भास्कर, 8 मई 2008 : महिलाओं के बारे में हमारा रवैया कैसा है, इसका प्रमाण है, महिला आरक्षण विधेयक! उसे वनवास करते हुए 12 साल हो गए लेकिन अभी तक उसका राजतिलक नहीं हुआ| ऐसा नहीं है कि उसका विरोध केवल वे लोग कर रहे हैं, जो विरोध करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं| उसके विरोधी वे भी हैं, जो उसका समर्थन कर रहे हैं| उसके असली विरोधी वे ही हैं, जो उसे प्रस्तावित कर रहे हैं और अनुमोदित कर रहे हैं| वरना क्या कारण है कि राजग और संप्रग सरकारें उसे पारित नहीं कर सकीं ? इस विधेयक के लिए जिन सब पार्टियों का भी समर्थन है, उनकी सदस्य-संख्या दो-तिहाई बहुमत से भी ज्यादा है| यदि संविधान में संशोधन आवश्यक हो तो वह भी संभव है|
फिर भी यह विधेयक अभी तक पारित क्यों नहीं हुआ? इसका कारण स्पष्ट है| यदि संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो गई तो सबसे ज्यादा नुक्सान किसका होगा? उन पुरूष नेताओं का होगा, जो अपने-अपने चुनाव-क्षेत्रें में बरसों से डटे हुए हैं| कौनसा चुनाव-क्षेत्र् महिला-आरक्षण में चला जाएगा, कोई नहीं कह सकता| बड़े से बड़े नेता पर गाज गिर सकती है| आज देश में ऐसे नेताओं का लगभग अभाव है, जो अपने प्रदेश या देश के किसी भी चुनाव-क्षेत्र् से चुनाव लड़ ले| वे भी ज़ाज, मज़हब, स्थानीय स्वार्थों आदि में फँसे रहते हैं| छोटे-मोटे नेताओं की मुसीबत और भी ज्यादा है| उन्हें तो चुनाव मैदान से ही बाहर होना पड़ेगा| महिला-विधेयक पारित करके वे अपने पाँव पर कुल्हाड़ी क्यों मारें? इसीलिए यह विधेयक उसी समय लाया जाता है, जब सरकारें अपनी आखिरी सांस गिन रही हों या संसद का सत्र् समाप्त होनेवाला हो| यदि यह विधेयक इस बार भी पारित नहीं होता है तो माना जाएगा कि हमारे पुरूष नेतागण घोर ढोंगी हैं|
जो पार्टियाँ इस विधेयक का विरोध कर रही हैं, वे महिला विरोधी-नहीं हैं| वे वास्तव में आरक्षण के अंदर आरक्षण की माँग कर रही हैं| उनका कहना है कि महिलाओं के 33 प्रतिशत में से कुछ-कुछ प्रतिशत आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की औरतोंको भी मिलना चाहिए| उनका तर्क है कि महिलाओं की इन 33 प्रतिशत सीटों पर ऊंची जातियों, शहरी, सम्पन्न और अंग्रेजीदॉं महिलाओं का कब्जा हो जाएगा| कुल मिलाकर हमारे समाज की यथास्थिति मजबूत होगी| इस आरक्षण के जरिए हम अपनी संसद और विधानसभाओं के एक-तिहाई हिस्से को सवर्ण और शहरी वर्ग के लिए आरक्षित कर देंगे| यह पिछले दरवाजे से सवर्ण आरक्षण का आगमन है|
यह तर्क ऊपरी तौर पर जायज मालूम पड़ता है लेकिन इसे आगे बढ़ाऍँ तो हमें अगणित खाई-खन्दकें दिखाई पड़ेंगी| सबसे पहले तो यही कहा जाएगा कि यदि संसद में जानेवाली औरतों में अगड़ी-पिछड़ी, हिन्दू-मुसलमान और शहरी-गॉंवदी का भेद किया जाए तो यही मानदंड नौकरियों में जाने वालों पर लागू क्यों न किया जाए ? सरकारी नौकरियों में हर साल जितने भी दलितों और पिछड़ों को आरक्षित पद मिलते हैं, अगर उनमें भी श्रेणियाँ बना दी जाएँ तो क्या दर्जनों श्रेणियाँ नहीं बन जाएँगी ? ये लोग आपस में ही लड़ मरेगे| किसी को कुछ नहीं मिलेगा| यदि महिलाओं को वर्ग के तौर पर हम अन्यायग्रस्त मानते हैं तो उन सबको हमें एक ही श्रेणी में मानना पड़ेगा| डॉ. राममनोहर लोहिया ने कभी क्या खूब कहा था कि महारानी हो या मेहतरानी, सब औरतों की कहानी एक ही जैसी है|
दूसरा, यदि महिलाओं को आरक्षण देते समय मजहब को भी जोड़ दिया जाए तो इससे बुरा क्या हो सकता है ? यह तो भारत के विनाश का प्रारम्भ है| इसके विरोध में ही महात्मा गाँधी ने 1932 में अनशन किया था| पाकिस्तान की नींव इसी आरक्षण पर डली थी|
तीसरा, यदि महिलाओं को उनकी जात, मजहब और क्षेत्र् (शहरी या ग्रामीण) के आधार पर संसद में बिठाया गया तो क्या यही मानदंड पुरूष-सदस्यों पर लागू नहीं किया जाएगा ? उसका परिणाम क्या होगा ? हमारी संसद भारत की जनता का नहीं, विभिन्न जातियों, संप्रदायों, क्षेत्रें और वर्गों का प्रतिनिधित्व करेगी| हम साबुत शीशे को जगह-जगह से तड़काकर उसमें अपना चेहरा क्यों देखना चाहते हैं? महिलाओं को आरक्षण इसलिए नहीं दिया जा रहा है कि वे महिलाएँ हैं या पुरूषों से अलग हैं| इसलिए दिया जा रहा है कि उन्हें पुरूषों के बराबर बनाना है| उन्हें अवसरों की प्राथमिकता देना है| इसमें हम अगर जात और संप्रदाय घुसाने की कोशिश करेंगे तो जोड़ने की प्रकि्रया, तोड़ने की प्रकि्रया बन जाएगी|
आरक्षण का लक्ष्य देश के विभिन्न समूहों में ब्याप्त दूरी और ऊँच-नीच को खत्म करना है, न कि उनको बढ़ाना| इसीलिए आरक्षण अनंत नहीं हो सकता| यदि आरक्षण ईमानदारी से लागू किया जाता और उसके लिए समुचित तैयारी की जाती तो अब तक आरक्षण अनावश्यक हो गया होता| वास्तव में नौकरियों और संसद में आरक्षण की सीमित अवधि घोषित होनी चाहिए और उसका आधार केवल आर्थिक होना चाहिए| आरक्षण को निहित स्वार्थ का हथियार बनने से रोका जाना चाहिए| डर यह है कि महिलाओं के लिए अब नौकरियों में भी आरक्षण की मॉंग होने लगेगी, जो कि तर्कसंगत है लेकिन मूल प्रश्न यह है कि आप योग्य उम्मीदवार कहाँ से लाएँगे ? यह प्रश्न नेताओं को भी तंग करेगा| वे चुनावों में अपनी रिश्तेदार और चहेती महिलाओं को भरने की कोशिश करेंगे तो बदनाम होंगे| वे खुद महिला उम्मीदवारों के नाम तय करते समय वंचित वर्ग की वास्तविक प्रतिनिधि महिलाओं (मलाईदार नहीं) को आगे क्यों नहीं बढ़ाते ? अपनी पार्टी के पदों पर भी महिला आरक्षण क्यों नहीं लागू करते ?
महिला आरक्षण भारतीय लोकतंत्र् में नई ऊर्जा का संचार करेगा| भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र् है लेकिन दुनिया के अन्य छोटे-मोटे देश महिला-आरक्षण के मामले में भारत से कहीं आगे हैं| दुनिया के 19 देशों की विधायिकाओं में महिलाओं को 17 से 33 प्रतिशत तक आरक्षण मिला हुआ है| उनमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और एराक भी है| स्पेन के मंत्रिमंडल में तो औरतों का बहुमत है| उनके पास उप-प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री जैसे पद भी हैं| यह ठीक है कि आज एक महिला भारत की राष्ट्रपति हैं, दूसरी महिला सत्तारूढ़ दल की अध्यक्ष हैं, कुछ महिलाएँ मुख्यमंत्री भी रहीं हैं और एक महिला भारत की विश्व-विख्यात प्रधानमंत्र्ी भी रह चुकी हैं लेकिन ये सब अपवाद हैं| राजनीति में महिला उत्कर्ष के ये उत्तम उदाहरण संयोग और विवशता की उपज हैं| इनके आधार पर हम यह नहीं कह सकते कि भारत समतावादी समाज है या भारतीय लोकतंत्र् अत्यंत प्रगतिशील है| अब जो विधेयक कानून बनेगा, वह भारतीय समाज में गहरे परिवर्तन पैदा करेगा| वह मर्द और औरत की बराबरी बढ़ाएगा|
संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या बढ़ेगी तो वही अनुपात मंत्रिमंडलों में भी माँगा जाएगा| (बसपा की 50 प्रतिशत की माँग उचित है लेकिन अव्यावहारिक है)| सरकार में महिलाएँ बढ़ेगी तो उसके व्यवहार में ईमानदारी, जवाबदारी और निष्ठा बढ़ेगी| अभी हमारी संसद में महिलाओं का अनुपात 10 प्रतिशत भी नहीं है| जब वह संसद और सरकार में 33 प्रतिशत होगा तो भारत नए रूप में ढलेगा| यह विश्वास इसलिए है कि पिछले साठ साल में इतने प्रधानमंत्रियों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, सांसदों विधायकों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, लेकिन एकाध अपवाद को छोड़कर इन पदों पर बैठनेवाली महिलाओं का दामन हमेशा साफ़ रहा है| यह विधेयक संसद में ही नहीं, सरकार में, नौकरियों में, निजी व्यापार में और सामान्य जन-जीवन में भी स्त्री-शक्ति के उदय का अपूर्व आह्रवान करेगा|
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