दैनिक भास्कर, 6 फरवरी 2008 : मुंबई में जो हो रहा है, उस पर कौन गर्व कर सकता है? खुद राज ठाकरे भी नहीं| इसीलिए राज ने अपने अनुयायियों को लाल झंडी दिखाई है| हिंसा और तोड़-फोड़ रोकने को कहा है| माना जा सकता है कि राज ठाकरे ने उन्हें शायद खुद हरी झंडी न दिखाई हो| सिर्फ उनके बयान मात्र् से हुड़दंग अपने आप भड़क गया हो| लेकिन इस तरह का हुड़दंग क्या आज की मुंबई को शोभा देता है? अब से 40 साल पहले जब बाल ठाकरे ने इसी तरह का पैंतरा अपनाया था तो मुंबई और भारत दोनों ही वैसे नहीं थे, जैसे कि आज हैं| मुंबई और भारत ही नहीं बदले हैं, खुद बाल ठाकरे भी बदल गए हैं| उन्होंने भी हिंसा और तोड़फोड़ का विरोध किया है| राज ठाकरे ने जब दो साल पहले नई पार्टी बनाई तो उनसे उम्मीद थी कि वे अपने चाचा और चचेरे भाई से कहीं आगे की बात कहेंगे लेकिन यह क्या हुआ कि उनके स्वचालित स्वयंसेवकों ने उन्हें 40 साल पीछे खिसका दिया| उनकी पार्टी का नाम किसी चार-पॉंच सौ साल पुराने नेता या राजा या धर्मध्वजी के नाम पर नहीं रखा गया है| उसका नाम है, ‘महाराष्ट्र नव-निर्माण सेना’ ! क्या पार्टी के नाम और काम में कोई मेल है? क्या किसी प्रदेश का नव-निर्माण पीछे-देखू वृत्ति से हो सकता है? महाराष्ट्र का निर्माण और वह भी नव-निर्माण क्या गैर-मराठी लोगों को निकाल बाहर करने से हो जाएगा?
गैर-मराठी लोगों के बहिष्कार की बात महाराष्ट्र के मुंह से तो बिल्कुल शोभा नहीं देती| वह महाराष्ट्र भी क्या महाराष्ट्र है, जिसमें राष्ट्र के लोग निरापद नहीं रह सकते? महाराष्ट्र का अर्थ क्या है? राष्ट्र से भी जो बड़ा हो, वह महाराष्ट्र है| यह कैसा महाराष्ट्र राज ठाकरे बनाना चाहते हैं, जिसमें राष्ट्र के भी गुण न हों| राष्ट्र का कोई भी व्यक्ति हो, महाराष्ट्र में उसका स्वागत सिर्फ इसलिए होना चाहिए कि वह महाराष्ट्र है| महाराष्ट्र में तो बृहत भारत के नागरिकों को भी स्वीकृति मिलनी चाहिए| महाराष्ट्र तो तभी महाराष्ट्र कहलाएगा| देश के किसी भी प्रांत के नागरिक को मुंबई में रहने की वैसी ही सुविधा होनी चाहिए, जैसे कि किसी भी मुंबईकर को देश के किसी भी गॉंव या शहर में होती है| यह संवैधानिक अनिवार्यता है और नैतिक भी ! राज ठाकरे अपने को कठघरे में क्यों खड़ा करना चाहते हैं? यदि उनकी पार्टी इसी लीक पर चलती रही तो वह मुंबई और महाराष्टि्रयनों का भारी अहित करेगी| यदि सचमुच सभी गैर-मराठीभाषी आज मुंबई छोड़ने का निर्णय कर लें तो सोचिए मुंबई की हालत क्या होगी? क्या मुंबई कोलकाता से भी बदतर नहीं हो जाएगी? मराठी उग्रवाद, बांग्ला उग्रवाद से अधिक आत्महंता सिद्घ होगा| एक तरफ टाटा, अंबानी, बिड़ला, गोयंका, गोदरेज आदि निकल जाऍं तो समृद्घि की छत ऊपर से उड़ जाएगी और दूसरी तरफ यूपी और बिहार के हाड़तोड़ मजदूर निकल जाऍं तो मुंबई के नीचे की जम़ीन खिसक जाएगी| यदि सिने संसार के सितारे खिसक जाऍं तो मुंबई को कौन बॉलीवुड कहेगा? मुंबई मुंबई रहे, इसके लिए यह जरूरी है कि ये सब लोग भी मुंबई में रहें| प्रेम और सम्मान से रहें|
राज ठाकरे ने अमिताभ बच्चन से जो आशा की, उसके पीछे अगर कोई दुर्भावना नहीं है तो उसे स्वाभाविक ही कहा जाएगा| सुसराल का आदमी अगर बहू से कह दे कि तुम पीहर का बहुत ध्यान रखती हो, तो ऐसा कहने में थोड़ा अनगढ़पन तो है लेकिन उसका बहुत बुरा नहीं माना जा सकता| यदि अमिताभ बच्चन से महाराष्ट्र में दानधर्म के लिए राज ठाकरे कह रहे हैं तो अमिताभ तो तुरंत अपनी थैली के मुंह खोल सकते हैं लेकिन अगर वे उत्तरप्रदेश में कुछ अच्छा कर रहे हैं तो आप उस पर उंगली कैसे उठा सकते हैं? क्या अपने पुरखों को याद करना या अपने पैतृक-स्थान की ओर लौटना या कृतज्ञता-ज्ञापन करना अनुचति है? क्या राज ठाकरे मानव-स्वभाव को ही बदलना चाहते हैं? एक ओर महाराष्ट्र प्रेम के नाम पर राज के स्वयंसेवक दूसरों का नुकसान करने पर उतारू हो जाते हैं और दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के प्रेम में पड़कर अमिताभ किसी का भला भी नहीं कर सकते, यह कौन सा तर्क है? अमिताभ के पीछे राज ठाकरे कहीं इसीलिए तो नहीं पड़ गए हैं कि बाल ठाकरे और उद्घव ठाकरे अमिताभ के मित्र् हैं? अपनी घरेलू खुन्नस वे गलत जगह निकाल रहे हैं| अमिताभ की इज्जत पर हमला ऐसा ही है, जैसे इस्पात की दीवार पर सिर फोड़ना| राज ठाकरे जैसा अपेक्षाकृत बुद्घिमान और साहसी नेता ऐसा क्यों करेगा? अमिताभ से उलझकर राज ठाकरे खुद को और महाराष्ट्र को बदनाम नहीं होने देंगे|
यह ठीक है कि राज ठाकरे को अपनी नई दुकान जमाने के लिए कोई मुद्दा चाहिए लेकिन अमिताभ बच्चन के साथ-साथ उन्होंने बिहारियों के छठ के त्यौहार को भी लपेट लिया है| उत्तर प्रदेश और बिहार के मुख्यमंत्रियों ने अभी काफी नरम प्रतिकि्रया व्यक्त की है लेकिन अगर मामले ने तूल पकड़ लिया तो देश के सारे मुख्यमंत्री एक तरफ होंगे और राज ठाकरे दूसरी तरफ ! राज ठाकरे की तरफ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी नहीं होंगे| मुंबई में सिर्फ हिंदीभाषी ही नहीं, देश के लगभग सभी प्रांतों के लोग रहते हैं| सब पर कीचड़ उछालकर आप अपने चेहरे को चिकना-चुपड़ा कैसे बनाए रखेंगे? आप छोटी-सी कुर्सी पकड़ पाएं, क्या इसीलिए आपको भारत माता के विराट सिंहासन को विदीर्ण करने दिया जाएगा? यदि आप सच्चे राष्ट्रभक्त हैं तो आप स्वयं इस कुमार्ग पर क्यों चलना चाहेगें? सच्चा भारतीय बने बिना क्या कोई सच्चा महाराष्ट्रीय हो सकता है? राष्ट्रभक्ति के बिना महाराष्ट्रभक्ति कैसे होगी?
राज ठाकरे इस सादे-से तथ्य को खूब समझते हैं और आशा है, वे अपने स्वयंसेवकों पर शीघ्र ही लगाम लगाएंगे लेकिन गैर-मराठी मुंबइकरों को भी मराठी मुंबईकरों की भावना का पूरा-पूरा ध्यान रखना होगा| वे अपनी मूल अस्मिता बनाए रखें, इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन स्थानीय भाषा, संस्कृति और व्यवहार को भी वे सहर्ष आत्मसात करें तो वे खुद को तो समृद्घ करेंगे ही, भारत में अंतर्प्रांतीय नागरिकता की नई कल्पना का आदर्श भी घड़ेंगे|
दैनिक भास्कर, 6 फरवरी 2008 : मुंबई में जो हो रहा है, उस पर कौन गर्व कर सकता है? खुद राज ठाकरे भी नहीं| इसीलिए राज ने अपने अनुयायियों को लाल झंडी दिखाई है| हिंसा और तोड़-फोड़ रोकने को कहा है| माना जा सकता है कि राज ठाकरे ने उन्हें शायद खुद हरी झंडी न दिखाई हो| सिर्फ उनके बयान मात्र् से हुड़दंग अपने आप भड़क गया हो| लेकिन इस तरह का हुड़दंग क्या आज की मुंबई को शोभा देता है? अब से 40 साल पहले जब बाल ठाकरे ने इसी तरह का पैंतरा अपनाया था तो मुंबई और भारत दोनों ही वैसे नहीं थे, जैसे कि आज हैं| मुंबई और भारत ही नहीं बदले हैं, खुद बाल ठाकरे भी बदल गए हैं| उन्होंने भी हिंसा और तोड़फोड़ का विरोध किया है| राज ठाकरे ने जब दो साल पहले नई पार्टी बनाई तो उनसे उम्मीद थी कि वे अपने चाचा और चचेरे भाई से कहीं आगे की बात कहेंगे लेकिन यह क्या हुआ कि उनके स्वचालित स्वयंसेवकों ने उन्हें 40 साल पीछे खिसका दिया| उनकी पार्टी का नाम किसी चार-पॉंच सौ साल पुराने नेता या राजा या धर्मध्वजी के नाम पर नहीं रखा गया है| उसका नाम है, ‘महाराष्ट्र नव-निर्माण सेना’ ! क्या पार्टी के नाम और काम में कोई मेल है? क्या किसी प्रदेश का नव-निर्माण पीछे-देखू वृत्ति से हो सकता है? महाराष्ट्र का निर्माण और वह भी नव-निर्माण क्या गैर-मराठी लोगों को निकाल बाहर करने से हो जाएगा?
गैर-मराठी लोगों के बहिष्कार की बात महाराष्ट्र के मुंह से तो बिल्कुल शोभा नहीं देती| वह महाराष्ट्र भी क्या महाराष्ट्र है, जिसमें राष्ट्र के लोग निरापद नहीं रह सकते? महाराष्ट्र का अर्थ क्या है? राष्ट्र से भी जो बड़ा हो, वह महाराष्ट्र है| यह कैसा महाराष्ट्र राज ठाकरे बनाना चाहते हैं, जिसमें राष्ट्र के भी गुण न हों| राष्ट्र का कोई भी व्यक्ति हो, महाराष्ट्र में उसका स्वागत सिर्फ इसलिए होना चाहिए कि वह महाराष्ट्र है| महाराष्ट्र में तो बृहत भारत के नागरिकों को भी स्वीकृति मिलनी चाहिए| महाराष्ट्र तो तभी महाराष्ट्र कहलाएगा| देश के किसी भी प्रांत के नागरिक को मुंबई में रहने की वैसी ही सुविधा होनी चाहिए, जैसे कि किसी भी मुंबईकर को देश के किसी भी गॉंव या शहर में होती है| यह संवैधानिक अनिवार्यता है और नैतिक भी ! राज ठाकरे अपने को कठघरे में क्यों खड़ा करना चाहते हैं? यदि उनकी पार्टी इसी लीक पर चलती रही तो वह मुंबई और महाराष्टि्रयनों का भारी अहित करेगी| यदि सचमुच सभी गैर-मराठीभाषी आज मुंबई छोड़ने का निर्णय कर लें तो सोचिए मुंबई की हालत क्या होगी? क्या मुंबई कोलकाता से भी बदतर नहीं हो जाएगी? मराठी उग्रवाद, बांग्ला उग्रवाद से अधिक आत्महंता सिद्घ होगा| एक तरफ टाटा, अंबानी, बिड़ला, गोयंका, गोदरेज आदि निकल जाऍं तो समृद्घि की छत ऊपर से उड़ जाएगी और दूसरी तरफ यूपी और बिहार के हाड़तोड़ मजदूर निकल जाऍं तो मुंबई के नीचे की जम़ीन खिसक जाएगी| यदि सिने संसार के सितारे खिसक जाऍं तो मुंबई को कौन बॉलीवुड कहेगा? मुंबई मुंबई रहे, इसके लिए यह जरूरी है कि ये सब लोग भी मुंबई में रहें| प्रेम और सम्मान से रहें|
राज ठाकरे ने अमिताभ बच्चन से जो आशा की, उसके पीछे अगर कोई दुर्भावना नहीं है तो उसे स्वाभाविक ही कहा जाएगा| सुसराल का आदमी अगर बहू से कह दे कि तुम पीहर का बहुत ध्यान रखती हो, तो ऐसा कहने में थोड़ा अनगढ़पन तो है लेकिन उसका बहुत बुरा नहीं माना जा सकता| यदि अमिताभ बच्चन से महाराष्ट्र में दानधर्म के लिए राज ठाकरे कह रहे हैं तो अमिताभ तो तुरंत अपनी थैली के मुंह खोल सकते हैं लेकिन अगर वे उत्तरप्रदेश में कुछ अच्छा कर रहे हैं तो आप उस पर उंगली कैसे उठा सकते हैं? क्या अपने पुरखों को याद करना या अपने पैतृक-स्थान की ओर लौटना या कृतज्ञता-ज्ञापन करना अनुचति है? क्या राज ठाकरे मानव-स्वभाव को ही बदलना चाहते हैं? एक ओर महाराष्ट्र प्रेम के नाम पर राज के स्वयंसेवक दूसरों का नुकसान करने पर उतारू हो जाते हैं और दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के प्रेम में पड़कर अमिताभ किसी का भला भी नहीं कर सकते, यह कौन सा तर्क है? अमिताभ के पीछे राज ठाकरे कहीं इसीलिए तो नहीं पड़ गए हैं कि बाल ठाकरे और उद्घव ठाकरे अमिताभ के मित्र् हैं? अपनी घरेलू खुन्नस वे गलत जगह निकाल रहे हैं| अमिताभ की इज्जत पर हमला ऐसा ही है, जैसे इस्पात की दीवार पर सिर फोड़ना| राज ठाकरे जैसा अपेक्षाकृत बुद्घिमान और साहसी नेता ऐसा क्यों करेगा? अमिताभ से उलझकर राज ठाकरे खुद को और महाराष्ट्र को बदनाम नहीं होने देंगे|
यह ठीक है कि राज ठाकरे को अपनी नई दुकान जमाने के लिए कोई मुद्दा चाहिए लेकिन अमिताभ बच्चन के साथ-साथ उन्होंने बिहारियों के छठ के त्यौहार को भी लपेट लिया है| उत्तर प्रदेश और बिहार के मुख्यमंत्रियों ने अभी काफी नरम प्रतिकि्रया व्यक्त की है लेकिन अगर मामले ने तूल पकड़ लिया तो देश के सारे मुख्यमंत्री एक तरफ होंगे और राज ठाकरे दूसरी तरफ ! राज ठाकरे की तरफ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी नहीं होंगे| मुंबई में सिर्फ हिंदीभाषी ही नहीं, देश के लगभग सभी प्रांतों के लोग रहते हैं| सब पर कीचड़ उछालकर आप अपने चेहरे को चिकना-चुपड़ा कैसे बनाए रखेंगे? आप छोटी-सी कुर्सी पकड़ पाएं, क्या इसीलिए आपको भारत माता के विराट सिंहासन को विदीर्ण करने दिया जाएगा? यदि आप सच्चे राष्ट्रभक्त हैं तो आप स्वयं इस कुमार्ग पर क्यों चलना चाहेगें? सच्चा भारतीय बने बिना क्या कोई सच्चा महाराष्ट्रीय हो सकता है? राष्ट्रभक्ति के बिना महाराष्ट्रभक्ति कैसे होगी?
राज ठाकरे इस सादे-से तथ्य को खूब समझते हैं और आशा है, वे अपने स्वयंसेवकों पर शीघ्र ही लगाम लगाएंगे लेकिन गैर-मराठी मुंबइकरों को भी मराठी मुंबईकरों की भावना का पूरा-पूरा ध्यान रखना होगा| वे अपनी मूल अस्मिता बनाए रखें, इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन स्थानीय भाषा, संस्कृति और व्यवहार को भी वे सहर्ष आत्मसात करें तो वे खुद को तो समृद्घ करेंगे ही, भारत में अंतर्प्रांतीय नागरिकता की नई कल्पना का आदर्श भी घड़ेंगे|
Leave a Reply