R Sahara, 15 June 2003 : सूरीनाम में हुआ सातवॉं विश्व हिंदी सम्मेलन कैसा रहा? इस प्रश्न का जवाब लोगों ने अपने-अपने ढंग से दिया है| जो लोग कई सम्मेलनों में गए हैं, उनका कहना है कि पिछले कई सम्मेलनों के मुकाबले यह सर्वश्रेष्ठ रहा| कुछ लोगों का कहना है कि इस सम्मेलन में पूर्ण अराजकता रही| ऐसे लोग इस तरह के सम्मेलन में पहली बार आए थे| यह उनका आखरी बार भी हो सकता है, क्योंकि उनका हिन्दी से कुछ लेना-देना नहीं है| वे या तो राज्य-सरकारों द्घारा भेज दिए गए थे या ‘विश्व हिंदी सम्मान’ झपटने के लिए टेढे-मेढ़े रास्तों से सूरीनाम पहुंच गए थे| ऐसे लोगों को समचुच बड़ी परेशानी हुई| सबसे पहले तो उन्हें ऐसे होटलों में ठहरा दिया गया, जो शायद वैसे नहीं थे, जैसा कि तोरारिका होटल था, जिसमें केन्द्र सरकार का प्रतिनिधि-मंडल ठहरा था और वह ही सम्मेलन-स्थल भी था| सूरीनाम पॉंच लाख लोगों का छोटा-सा देश है| उसमें होटलों की भारी कमी है| दूसरी होटलों से सम्मेलन के होटल आने-जाने के लिए बसें और कारें थीं लेकिन इससे भी वे प्रतिनिधि संतुष्ट नहीं थे| दूसरा, इस सम्मेलन में कुछ मुखर वक्ताओं ने जब राजनीतिक अखाड़ेबाजी शुरू की तो जागरूक श्रोताओं ने उन्हें डॉंट-डपटकर नीचे बिठा दिया| तीसरा, एक-दो ‘सम्मानितों’ का प्रशास्ति-पाठ कुछ इस तरह किया गया कि लोगों को तुरन्त पता चल गया कि यह दयापूर्ण या दबावपूर्ण सम्मान है| चयन -समिति के सदस्यों ने भी लोगों को बता दिया कि उक्त सम्मानों के लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं| इस तरह के तीन-चार व्यतिक्रमों के अलावा यह सम्मेलन सुचारू रूप से चलता रहा| सूरीनाम के राष्ट्रपति रोनाल्डो वेनेत्सियान और उप-राष्ट्रपति अयोध्या लगभग सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में उपस्थ्ति रहे| सभी मुख्य सत्र और समानांतर संगोष्ठियों में उपिस्थिति अच्छी रही| बहस के विषय भी उत्तम थे| हिन्दी और कम्यूटर-तकनीक, वैश्वीकरण और हिन्दी, हिंदी की बोलियॉं, शिक्षण, प्रवासी भारत में हिन्दी, संयुक्त राष्ट्रमें हिन्दी, 21वीं सदी की हिंदी पत्रकारिता आदि पर सांयोयांग विचार-विमर्श हुआ| बहस का स्तर काफी बेहतर हो सकता था बशर्ते कि आयोजकगण वक्ताओं को एकाध माह पहले ही उनके विषय बता देते| सम्मेलन की यह मुख्य कमी रही कि प्रतिनिधियों को पहले से किसी भी कार्यक्रम की सूचना नहीं मिलती थी| सम्मेलन ने हमेशा की तरह कुछ प्रस्ताव पारित किए| प्रस्ताव-समिति में मेरा नाम भी था लेकिन मुझे पता नहीं चला कि प्रस्ताव कब तैयार हुए| जो प्रस्ताव सबसे जरूरी था, उसका जि़क्र ही नहीं हुआ| अंग्रेजी को अपदस्थ करके उसके स्थान पर हिन्दी को भारत की राज भाषा बनाया जाए, यह प्रस्ताव कोई नहीं लाया| यह प्रस्ताव भी कोई नहीं लाया कि दुनिया के समस्त हिंदीभाषी अपना दैनंदिन काम-काज हिन्दी में करें| ये दोनों प्रस्ताव कैसे आते? इस तरह के सम्मेलनों का मुख्य-लक्ष्य हिन्दी लाना नहीं, सैर-सपाटा करना होता है| सम्मेलन की सरकारी विज्ञप्तियॉं भी अंग्रेजी में ही होती थीं| सम्मेलन के दौरान कुछ मित्रों ने बड़े परिश्रम से एक छोटी-सी पत्रिका भी प्रतिदिन छापी लेकिन उस पर सरकारी छाया मंडराती रही| उसकी रपट अधिक संतुलित और प्रामाणिक हो सकती थी|
अगला सम्मेलन हॉलैंड में होगा| हॉलैंड के मित्रों ने अभी से चिन्ता जताई| उनका कहना था कि भारत के करदाताओं का जो चार-पॉंच करोड़ रू खर्च होता है, उसका पूरा लाभ हिन्दी को मिलना चाहिए| उनकी राय थी कि यदि उन्हें आयोजन की स्वायत्ता मिलेगी तो वे बहुत उपयोगी और सार्थक सम्मेलन करेंगे| मोरिशस के मित्रों ने बताया कि उनकी संसद ने विश्व हिंदी सचिवालय का कानून पारित कर दिया है लेकिन अभी तक वह जबानी जमा-खर्च ही है| जब तक भारत सरकार पैसा नहीं देगी, कोई काम आगे नहीं बढ़ेगा| सम्मेलन का काम सुचारू रूप से चले, इस दृष्टि से एक स्थायी समिति बनाने का सुझाव भी आया है| संयुक्तराष्ट्र में हिन्दी लाने के विशेष संकल्प ने यहॉं प्रतिनिधियों को विशेष हर्षित किया| संयुक्तराष्ट्र में अगर हिन्दी आ गई तो भारत सरकार में उसे लाना अधिक आसान हो जाएगा| कुछ तो शर्म आएगी| विश्व-मंच पर हिन्दी मान्य होगी तो भारत की अन्य भाषाओं के बीच भी उसकी मान्यता बढ़ेगी| त्रिनिदाद, गयाना, जमैका, सूरीनाम, मोरिशस जैसे देशों में डूबता हुआ हिन्दी का जहाज शायद फिर से तिरने लगे| विश्व-मंच पर देवनागरी के चमकने पर दुनिया की अनेक लिपिरंचित भाषाओं और बोलियों के लिए आशा की नई किरण फूटेगी| भारत का महाशक्ति का उभरता दर्जा और उसकी भाषा की विश्व-मान्यता मणि-कांचन योग बनेंगे| विदेश मंत्री के तौर पर संयुक्तराष्ट्र में पहली बार हिन्दी बोलकर वाहवाही लूटनेवाले अटलजी के लिए अब अपनी निष्ठा सिद्द करने का अवसर आ गया है| संसदीय शिष्ट मंडल के नेता डॉ लक्ष्मीनारायण पॉंडे ने बैरागीजी और मेरे अनुरोध पर सभी सांसदों से एक प्रस्ताव पारित करवा लिया है कि सं रा में हिन्दी की मान्यता के लिए संसद संकल्प करेगी और सरकार उसे लागू करेगी|
सम्मेलन में इतनी अधिक व्यस्तता रही कि सूरीनाम के अपने कई पुराने मित्रों के घर जाने का समय नहीं मिल पाया| फिर भी समापन के बाद आधे दिन में पूर्व संसदाध्यक्ष इंदिरा ज्वालाप्रसाद, पूर्व गृह मंत्री जानकी प्रसाद सिंह, उद्योगपति सुग्रीव बल्देव और राजदूत नन्दू के घर जाना हुआ| संसद और सत्तारूढ़ पार्टी (वतन हितकारी पार्टी) के उपाध्यक्ष राजकुमार रणजीतसिंह के घर भोजन भी हुआ| आर्यसमाज और सनातन धर्म सभा के नेताओं से भी बात हुई| आर्य दिवाकर सभा का भवन दूर से देखा| ऐसा भव्य आर्य समाज भवन शायद भारत में भी कहीं नहीं हैं| इंदिराजी के घर पर मेरे साथ जानेवालों में सांसद बालकवि बैरागी, उ प्र, के विधानसभाध्यक्ष केसरी नाथ त्र्िापाठी , विदेश मंत्रालय के सचिव जगदीश शर्मा, डा, शभूनाथसिंह, हिमांशु जोशी, चित्रा मुद्गल, डॉ कमलकिशोर गोयंका आदि मित्रगण थे| भाव-भीना स्वागत, शुद्द हिन्दी, घर का बड़ा मंदिर और उत्कट अउत्मीयता देखकर सभी मोहित हुए| सूरीनाम की हरियाली और घने जंगल देखने लायक हैं| जनसंख्या है, सिर्फ पॉंच लाख औरे क्षेत्रफल है, बांग्लादेश के बराबर| लगभग 86 प्रतिशत भूमि पर हरे जंगल हैं| पॉंच लाख में से लगभग दो लाख यहॉं भारतवंशी हैं| नीग्रो लोग सबसे ज्यादा हैं| चीनी, जापानी, इंडोनेशियाई और सीरियाई लोग भी हजारों की संख्या में हैं| भारतीय लोग खेती और व्यापार में हैं| नीग्रो लोग फौज, पुलिस और नौकरियों में हैं| देश की आर्थिक स्थिति अच्छी नही है| राजनीतिक सत्ता नीग्रो समुदाय के हाथ में है| जब से जगन्नाथ लक्ष्मण नामक लौह-पुरूष का निधन हुआ, यहॉं भारतीय कमजोर पड़ गए हैं| उनमें फूट पड़ गई है| लगभग सभी घड़ों के नेताओं से मेरी बात हुई है| इंदिरा ज्वालाप्रसाद बिना निमंत्रण के ही कार्यक्रम में पहुंच गईं (क्योंकि उनके भाई वैदिक का सम्मान था)| खलबली मच गई लेकिन मैंने उन्हें वर्तमान संसदाध्यक्ष और सत्तारूढ़ दल के अध्यक्ष सरजू के पास बिठा दिया| दोनों में कई वर्ष बाद पहली बार बात हुई| इसी प्रकार अन्य घड़ों में भी बात शुरू हो गई| हिन्दी सम्मेलन के बहाने अगर प्रवासी हिन्दी लोगों की हित-रक्षा हो जाए तो एक पंथ दो काज हो गए|
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