R Sahara, 27 July 2003 : न्यूयॉर्क से चले और लंदन होते हुए दुबई पहुंचे| दुबई की गर्मी भी क्या गर्मी है| हवाई अड्डे से बाहर निकले तो लगा कि किसी विराट् तंदूर में आ खड़े हुए हैं| दो-तीन मिनिट में ही कार में जा बैठे| वातानुकूलित मर्सिडीज़ ने राहत दिलवाई लेकिन अरब देश की गर्मी के वे तीन मिनिट दिल्ली की गर्मी के तीन माह से भी ज्यादा लंबें सिद्घ हुए| ‘संयुक्त अरब अमारात’ नामक राज्य में सात देश हैं, उनमें दुबई और अबू धावी सबसे बड़े हैं| दुबई के लिए कहा जाता है कि वह ‘हिन्दुस्तान का सबसे सुन्दर और स्वच्छ शहर है|’ हिन्दुस्तान का क्यों? इसलिए कि दुबई के चप्पे-चप्पे में भारतीय लोग भरे हुए हैं| अरब लोग तो कहीं दिखाई ही नहीं पड़ते| लगता है, दुबई में भारतीय ज्यादा हैं और अरब कम ! सर्वत्र हिन्दी सुनाई पड़ती है| वहॉं रहनेवाले अफगान, लेबनानी, अरब और हमारे मलयाली और तमिल लोग भी हिन्दी बोलते हैं| हिन्दी का प्रचलन यहॉं इसलिए भी है कि लाखों मजदूर भारतीय हैं| वे हिन्दी के अलावा कुछ नहीं समझते| दुबई के मकान, दुकान, सड़कें, होटलें, मनोरंजन स्थल, दफ्तर, कारें, संचार-उपकरण आदि अमेरिका को भी मात करते हैं| प्रति व्यक्ति आय एक लाख रू. वार्षिेक से ज्यादा है| जिन अरबों की आमदनी पोने दो लाख रू. माह है, उन्हें गरीबों की श्रेणी में रखा जाता हे| ऐसे अरबों को उनके विवाह के समय गृहस्थी बसाने के लिए सरकार 10 लाख रू. की सहायता भी देती है| इस्लामी देश होने के बावजूद यहॉं का माहौल अमेरिका या भारत-जैसा है| काफी खुलापन है| लेकिन राजनीति वैसी नहीं है, जैसी हमारे यहॉं है| अखबार तो अच्छे-अच्छे निकलते हैं लेकिन चुनाव, संसद, भाषणबाजी, आपाधापी, विरोध-समर्थन आदि कुछ नहीं है| सातों देशों के सुल्तान मिलकर संयुक्त अमारात चलाते हैं|
अबू धाबी के सुल्तान राष्ट्रपति हैं| उनके भतीजे शेख नाह्रयान मुबारक शिक्षा मंत्री हैं| उनसे पुराना परिचय है| वे भारत की निजी यात्रा भी कर चुके हैं| उन्होंने राजभोज के लिए अबू धाबी बुलाया| उन्होंने कहा कि महल की कार आपको लेने दुबई आएगी| दो घंटे का रास्ता ! थोड़ी देर में मुहम्मद रकबानी का फोन आया कि आपको अबू धाबी मैं ले चलूंगा| मुहम्मद 28 साल के हैं लेकिन बुद्घि उनके पास 60 साल के आदमी की है| 13 भाई-बहनों में सबसे बडे़ हैं, केंद्रीय मंत्री के बेटे हैं और अरबों डॉलर का व्यापार करते हैं| मैंने पूछा कि ‘आपने शेख साहब से इजाजत ली या नहीं? उनकी कार का क्या होगा?’ मुहम्मद ने कहा कि शेख साहब से मैंने कहा कि ‘डॉ. वैदिक के साथ आने-जाने के चार घंटे मेरे लिए विश्वविद्यालय की चार साल की पढ़ाई के बराबर हैं| आप मुझे इस लाभ से क्यों वंचित करना चाहते हैं?’ इस पर शेख हॅंसने लगे और उन्होंने मुझे आपके साथ आने की अनुमति दे दी| अतिरंजना का कैसा कमाल है? यों किसी सत्ताधारी शेख से बहस करना यहॉं कल्पना के परे माना जाता है| दैवी सत्ता का सिद्घांत प्राचीन हिन्दू पद्घति में माना जाता रहा होगा लेकिन यहॉं मैंने उसे अमली रूप में पाया|
शेख नाह्रयान यों तो केवल शिक्षामंत्री हैं और उनकी आयु 40-45 की होगी लेकिन उनका रूतबा किसी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति से कम नहीं है| पिछले साल दुबई के एक समारोह में मैंने उनका जलवा देखा था| उनका राजभोज भी अद्भुत होता है| हमारे राष्ट्रपति भवन या हैदराबाद हाउस के राजभोज-कक्ष के लगभग चार गुना बड़ा उनका राजभोज कक्ष है| वर्गाकार जमी मेजाें पर मनों खाना लदा दिखाई पड़ता है| बड़े-बड़े थालों में गोश्त, चावल और बड़ी-बड़ी रूमाली रोटियों के ढेर लगे होते हैं| ऊपर दर्जनों झूमरों में लगे हजारों बल्बों की रोशनी चकाचौंध पैदा करती है| बड़े-बड़े अमीर-उमरां, शेख सयद, मंत्री-राजदूत वगैरह अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक कतार में खड़े होते हैं| शेख नाह्रयान मुझे लेकर उस स्थान पर पहुंचे, जहॉं सबसे ऊॅंची कुर्सियॉं रखी थीं| जैसे ही हम दोनों बैठे, सैकड़ों मेहमान भी अपनी-अपनी कुर्सी में बैठ गए| ज्यों ही मेरी नज़र मेरे सामनेवाले थाल पर पड़ी, जी घबराने लगा| खाने लायक कोई चीज़ नहीं| रोटियॉं आकर्षक लगीं लेकिन वे गोश्त के बड़े-बड़े पिंडों पर ढकी हुई थीं| मैंने महामहिम से पूछा कि ‘क्या मैं आपको बताना भूल गया कि मैं शाकाहारी हूं?’ वे बोले, ‘नहीं, नहीं मुझे पता है|’ इतना बोलते ही उन्होंने थाल पर जमी रोटियों की थप्पी पर से ऊापर की रोटी खींची और उसे आनन-फानन चूरने लगे| इस रोटी से गोश्त छुआ नहीं था| रोटी के जब छोटे-छोटे टुकड़े हो गए तो उन्होंने उस पर दही डाला और उसे मसल-मसलकर ग्रास का रूप दे दिया और मुझसे कहा ‘लीजिए, अब नोश फरमाइए|’ सारे मेहमान यह नज्जारा ऑंखें गड़ा-गड़ाकर देख रहे थे| मैं भी चकित था| अपनी मॉं के हाथ की दूध में मसली हुई रोटी बचपन में जरूर खाई थी लेकिन इसे कैसे खाऍं? लेकिन क्या करते? खाना शुरू किया| उधर उन्हाेने गोश्त के बड़े-बड़े लौंदे हाथ से चीरने शुरू किए तो मैंने क्या देखा कि कुछ खास लोग उन्हें लेने के लिए लपके| जैसे कि कोई देवता प्रसाद बॉंट रहा हो, शेख साहब ने गोश्त बॉंटा और थोड़ा खुद भी खाया| बीच-बीच में गोश्त के हाथ से ही वे सलाद, फल और खजूर मेरी प्लेट में रखते जा रहे थे| मैं क्या करता? उस श्रद्घा और प्रेम के आगे मेरा सारा संकोच काफूर हो गया| राजमहल में शायद मैं पहला शाकाहारी मेहमान था| उन्हें अंदाज ही नहीं था कि भारतीय शाकारी होने का मतलब क्या होता है| मैं बचा-बचाकर, हटा-हटाकर, पोंछ-पोंछकर कुछ न कुछ खाता रहा| उन्होंने भारत की राजनीति, इस्लाम अल्पसंख्यकों की जिंदगी, विदेश नीति, एराक़ आदि मुद्दों पर कई सवाल पूछे| उनका कहना था कि पहले भी वे कुछ भारतीय मंत्रियों से मिले, लेकिन उनके जवाब वैसे नहीं थे, जैसे मेरे थे| मैं स्वयं शेख नाह्रयान की उदार धार्मिकता और मुक्त विचार शैली से प्रभावित हुआ|
भोजन समाप्त होते ही शेख मुझे अपनी ‘मजलिस’ में ले गए| मजलिस याने दरबार ! बादशाह का दरबार ! विशाल गोलाकार भवन| दीवालों की जगह पारदर्शी शीशे ! शीशे की दीवालों से सटे सोफों पर सैक्ड़ों लोगों के बैठने का इन्तज़ाम| गोलाकार शीश-भवन इतना बड़ा है कि सैकड़ों लोग एक-दूसरे से बात करते रहें तो भी उनकी आवाज महामहिम शेख को सुनाई नहीं पड़े| शेख नाह्रयान ने मुझे अपने दाऍं बिठा लिया| रह -रहकर बात करते रहे| किसी देश का राजदूत या अपना कोई मंत्री या शाही परिवार का कोई बुजुर्ग आता तो शेख खड़े होते, विदेशी से हाथ मिलाते और स्वदेशी अरब की नाक से अपनी नाक छुआते और बैठ जाते| जब तक शेख नहीं बैठते, सभी लोगों को खड़े रहना पड़ता| यह कवायद कई बार हुई| महत्वपूर्ण लोग शेख के पास दो-तीन मिनिट बैठते, अपनी बात कहते और आगे बढ़ जाते| ज्यादातर लोग दूर-दूर बैठते| आते और चले जाते| शेख उनकी तरफ शायद देखते तक नहीं| यही दरबार है| शेख के शाही दरबार में प्रवेश मिल गया, यही क्या कम बड़ी बात है?
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