हिंदुस्तान, 17 जनवरी 2002 : मुशर्रफ के भाषण से भारत को निराशा है लेकिन अगर उसे इस्लाम और पाकिस्तान की नज़र से देखें तो वह लाजवाब था| वह भाषणों का भाषण था, भाषणों का सरताज़ था| वैसा भाषण तो जिन्ना, अयूब, भुट्टो और जि़या तक ने भी नहीं दिया| अगर कभी दिया होता और उस पर अमल किया होता तो पाकिस्तान सचमुच पाकिस्तान बन जाता याने पवित्र् स्थान| पाक याने पवित्र् और स्तान याने स्थान! पिछले पचपन साल में पाकिस्तान कितना ‘नापाक’ बन गया है, इसका जैसा नक्शा राष्ट्रपति मुशर्रफ ने खींचा है, किसी भी पाकिस्तानी हुक्मरान ने नहीं खींचा| यह ठीक है कि सिर्फ भाषण झाड़ देने से कुछ नहीं होता लेकिन इस तरह का भाषण देना भी कोई बच्चों का खेल नहीं है| असलियत तो यह है कि यह शेर की सवारी है| अब या तो मुशर्रफ मज़हबवाद को खा जाएँगे या मज़हबवाद मुशर्रफ को खा जाएगा| पाकिस्तान बनने के बाद शायद यह पहला मौका होगा जबकि सर्वोच्च हुक्मरान का टिकना या जाना विचारधारा के आधार पर होगा|
मुशर्रफ ने अपनी तक़रीर से पाकिस्तान की नींव ही हिला दी है| पाकिस्तान बना है-घृणा और हिंसा की नींव पर| घृणा और हिंसा को मुहम्मद अली जिन्ना ने इस्लाम का बाना पहना दिया था, हाँलाकि वे खुद इस्लामवादी नहीं थे और उन्होंने पाकिस्तान बनने के बाद सर्वधर्म समभाव की बात भी कही थी| मुशर्रफ ने अपना सूत्र् वहीं से उठाया है, जहाँ से जिन्ना ने छोड़ा था| उन्होंने अपने भाषण में उस इस्लाम पर सीधा प्रहार किया है, जो जिहाद के नाम पर हिंसा, आतंक, कूपमंडूकता और पोंगापंथ फैलाता है| उन्होंने मदरसों और मस्जिदों के काले कारनामों का जिस तरह भाण्डाफोड़ किया है और उन पर लगाम लगाने की जैसी घोषणा की है, वह पाकिस्तान ही नहीं, सम्पूर्ण मुस्लिम जगत के लिए अनुकरणीय कदम है| क्या भारत के धर्म-निरपेक्ष, पंथ-निरपेक्ष नेताओं में इतना दम है कि वे भारत के सांप्रदायिक तत्वों के विरुद्घ मुशर्रफ की तरह सिंह-गर्जना कर सकें ? अतातुर्क कमाल पाशा ने सिर्फ तुर्की के मुसलमानों का उद्घार किया लेकिन मुशर्रफ ने जो कदम उठाया है, वह दुनिया के सारे मुसलमानों को नई रोशनी दिखाएगा| आज के मुसलमानों के सामने दो ही विकल्प हैं-उसामा या मुशर्रफ ! यदि उसामा को मुसलमान अपना आदर्श मानेंगे तो मदरसे और मस्जिद अज्ञान और आतंकवाद के पिंजरे बनेंगे और मुशर्रफ को आदर्श मानेंगे तो वे इल्मो-फन और रूहानियत के झरने बनेंगे| इस्लाम को पिंजरा बनाना है या झरना, यह मुसलमानों को खुद तय करना है| जो बात मुशर्रफ ने कही, वही बात अगर जॉर्ज बुश या अटलबिहारी वाजपेयी कह देते तो इस्लाम के समुन्दर में आग लग जाती और मुशर्रफ के पहले कोई पाकिस्तानी नेता कह देता तो पाकिस्तान के इस्लामवादी उसके परखचे उड़ा देते|
पाकिस्तान बना है, इस्लाम के नाम पर ! सारी दुनिया में पाकिस्तान के अलावा एक देश भी ऐसा नहीं है जो मज़हब के नाम पर बना हो| पहले से बने हुए राष्ट्रों ने किसी मज़हब को अपना राष्ट्रीय धर्म घोषित कर दिया हो, यह अलग बात है| ऐसे में पाकिस्तान से क्या उम्मीद की जाती है ? क्या यह नहीं कि वह सच्चा इस्लामी राष्ट्र बने| इस्लाम के सिद्घांतों पर आचरण करे ? मुशर्रफ ने यही सवाल उठाया है| उन्होंने पूछा है कि इस्लामवादियों और जिहादियों, ज़रा बताओ कि तुमने इस्लाम की कौनसी खिदमत की है| तुमने कितने काफिरों को मुसलमान बनाया या इसका उल्टा किया है याने अपनी करतूतों से मुसलमानों को काफिर बनाया ? तुमने इस्लामी तालीम को दहशतगर्दी (आतंकवाद) और फिरकापरस्ती (सांप्रदायिकता) का स्रोत बना दिया है| जो मदरसे कभी इब्ने-सीना, अल-बेरूनी और खल्दून जैसे वैज्ञानिकों और बौद्घिकों को जन्म देते थे, अब सिर्फ मज़हबी इमाम और आतंकवादी पैदा करने की फैक्टि्रयाँ बन गए हैं और जो मस्जिदें अल्लाह की इबादत के लिए खड़ी की गई थीं, अब उनकी हिफ़ाजत के लिए पुलिस खड़ी करनी पड़ती है| मज़हबी लोग अल्लाहताला के साथ फरेब कर रहे हैं| मुशर्रफ ने अपने भाषण में मुल्ला-मौलवियों और इमामों को खरी-खरी तो सुनाई ही, यह भी एलान कर दिया कि सभी मदरसों और मस्जिदों का पंजीकरण होगा और सरकारी अनुमति के बिना नए मदरसे और मस्जिदें स्थापित नहीं किए जा सकते| इतना ही नहीं, सरकार उन पर कड़ी निगरानी भी रखेगी| वह मदरसों के पाठ्रयक्रमों को बदलेगी और नफरत फैलानेवाले पेश-इमामों को गिरफ्तार भी करेगी| क्या इस तरह का कानून भारत की सरकार पास कर सकती है ? वास्तव में सच्ची धर्मनिरपेक्षता यही है| मज़हब बड़ा या राज्य, यह वह बुनियादी सवाल है, जो मुशर्रफ के हर वाक्य के गर्भ में छिपा हुआ है| यह सवाल खड़ा करके मुशर्रफ ने पाकिस्तान के पचपन साल के इतिहास को कसौटी पर चढ़ा दिया है| उन्होंने अपने भाषण में बार-बार शिकायत की है कि इस्लाम के नाम पर राज्य की अवज्ञा की जाती है| पाकिस्तान को पिलपिला राज्य बना दिया गया है| पाकिस्तानियों को, मुसलमानों को दुनिया जाहिल, गँवार, असभ्य लोगों की तरह देखती है| मज़हबियों ने इस्लाम के नाम पर हजारों लोगों को अफगानिस्तान में मरवा दिया| अपने मुल्क में तबाही मची हुई है| उसे नहीं रोकते| दूसरे मुल्कों में टाँग अड़ाते हैं| ‘बेवकूफी’ करते हैं| यह नहीं समझते कि वे उन्हें सौतेला समझेंगे| यह कहकर मुशर्रफ ने पाकिस्तानियों के सामने पहला यक्ष-प्रश्न यह उछाला| उन्होंने पूछा कि क्या आप पाकिस्तान को एक मज़हबी राष्ट्र बनाना चाहते हैं या प्रगतिशील और कल्याणकारी राष्ट्र ? याने उन्होंने पाकिस्तान की नींव पर ही हथौड़ा जमा दिया| मज़हब के आधार पर बने राष्ट्र से यह पूछना कि तुम क्या बनना चाहते हो याने वे पाकिस्तान की परिभाषा दुबारा लिखना चाहते हैं और नई लिखना चाहते हैं| दूसरा, उन्होंने इस्लाम की ‘उम्मा’ इस्लामी विश्व-समुदाय की धारणा को भी यह कहकर चुनौती दे दी कि इस्लाम के नाम पर दूसरों के मामलों में टाँग अड़ाने का आपको कोई अधिकार नहीं है| याने विश्व मुस्लिमवाद के मुकाबले उन्होंने दो-टूक शब्दों में पाकिस्तानी राष्ट्रवाद की वकालत की| तीसरा, उन्होंने छोटे जिहाद (जिहादे-असगर) को रद्द कर दिया याने मज़हबी युद्घों के दिन लदने की घोषणा कर दी और बड़े जिहाद (जिहादे-अकबर) का आह्नान किया याने अशिक्षा, गरीबी, भुखमरी, संकीर्णता आदि के खिलाफ युद्घ का नारा दिया| उन्होंने पूछा कि इस्लाम को फैलाने का ठेका क्या पाकिस्तान ने ही ले रखा है ?
मुशर्रफ ने हिंसा और आतंकवाद की जैसी कड़ी भर्त्सना अपने भाषण में की है, उससे ज्यादा क्या की जा सकती है| अब वे उससे पलटना चाहें तो भी मुश्किल होगी| बाण तो धनुष से निकल चुका| धनुष से निकले हुए बाण को अब अगर वे किसी भी बहाने लौटाना चाहेंगे तो उनकी जग हँसाई तो होगी ही, पाकिस्तान में उनकी प्रभुता भी खत्म हो जाएगी| यह हिम्मत की बात है कि उन्होंने कश्मीर के लिए भी आतंकवाद को गलत बताया है| उन्होंने 13 दिसंबर को भारतीय संसद और 1 अक्टूबर को श्रीनगर विधानसभा पर हुए हमलों को 11 सितंबर के ट्रेड टॉवर पर हुए हमलों की श्रेणी में रखा है| मुशर्रफ के इस बयान से अमेरिका तो भाव-विभोर है ही, भारत के घावों पर भी कुछ मरहम लगा है लेकिन भारत मुशर्रफ पर भरोसा कैसे करे ? अकेले मुशर्रफ तो पाकिस्तान नहीं है| पाकिस्तान तो फौज है, आई0एस0आई0 है, राजनीतिक दल हैं, मजहबी संगठन हैं, आतंकवादी गिरोह हैं और निहत्थी जनता है| क्या इन सब तत्वों ने मुशर्रफ की ‘थीसिस’ को स्वीकार कर लिया है ? पिछले पचपन साल से जिस भारत-विरोधी अफीम पर पाकिस्तान पल रहा था, क्या उसके लिए मुशर्रफ का भाषण जबर्दस्त जमालगोटा सिद्घ होगा ? यदि वह सिद्घ हो तो पाकिस्तान के लिए इससे अधिक कल्याणकारी बात क्या हो सकती है ?
लेकिन लगता है कि ऐसा होने में खुद मुशर्रफ को गहरा संदेह है| इसीलिए उन्हें अपने भाषण में भारत को जबर्दस्ती घसीटना पड़ा| कश्मीर पर उन्हें चौके-छक्के मारने पड़े| यदि राज्य के मुकाबले वे मज़हब को कलम करना चाह रहे हैं तो कश्मीर तो अपने आप हवा हो जाना चाहिए, क्योंकि कश्मीर की माँग तो मज़हब के आधार पर ही की जा रही है| लेकिन उन्हें बहुत जोर देकर कहना पड़ा कि कश्मीर हमारी रगों में बहता है और यह भी कि भारत ने ज़रा भी छेड़-छाड़ की तो हम मज़ा चखा देंगे| यह सब उन्हें क्यों कहना पड़ा ? क्या इसलिए कि अगर वे ‘यह बात’ नहीं कहते तो उनकी ‘वह बात’ कोई नहीं सुनता| पाकिस्तान और इस्लाम को सुधारनेवाली बात ! पाकिस्तान की दुखती रग यही है| पाकिस्तान के एजेन्डे पर पाकिस्तान का भला बहुत नीचे है और भारत का बुरा सबसे ऊँचा है| मुशर्रफ जब तक ‘दूसरी बात’ नहीं कहें, उनकी ‘पहली बात’ कौन सुनेगा ? अगर उनकी ‘पहली बात’ पाकिस्तान मान लेगा तो ‘दूसरी बात’ अपने आप अप्रासंगिक हो जाएगी| सुधरा हुआ पाकिस्तान भारत के साथ संबंध सुधार की सबसे बड़ी गारंटी है|
मुशर्रफ की ‘दूसरी बात’ से भारत को बौखलाने की जरूरत नहीं है| बल्कि मुशर्रफ की पीठ ठोकने की जरूरत है, क्योंकि अगर वे अपने भाषण को अमली जामा पहना सके तो मज़हबवाद और आतंकवाद जैसे अफगानिस्तान से खत्म हुआ, वैसे ही पाकिस्तान से भी खत्म होगा| उस वातावरण में पाकिस्तान क्या, शायद भारत ही पहल करेगा कि कश्मीर का मसला हल किया जाए| उस स्थिति में कश्मीर का मसला त्र्िपक्षीय नहीं, द्विपक्षीय रह जाएगा| आज मुशर्रफ का मुँह अमेरिका की तरफ है और पीठ भारत की तरफ ! उन्होंने वह हर बात कही है, जिससे अमेरिका खुश हो लेकिन ऐसी हर बात कहने में संकोच दिखाया है, जिससे भारत को खुशी हो| अफगान-युद्घ में पकड़े गए आतंकवादी सहर्ष अमेरिका के हवाले किए जा रहे हैं, जबकि भारत द्वारा दी गई आतंकवादियों की सूची उन्होंने रद्दी की टोकरी में डाल दी है और फौजी जनरल के तौर पर भारत को धमकी भी दे डाली है| वे भूल गए कि भारत उनका पड़ौसी है, भारत पाकिस्तान का मातृ-देश है और भारत के बिना पाकिस्तान का गुजारा नहीं है| अमेरिका के बिना पाकिस्तान रह सकता है लेकिन भारत के बिना पाकिस्तान और पाकिस्तान के बिना भारत कैसे रह सकता है? पाकिस्तान को अपनी पीठ नहीं, मुँह भारत की तरफ करना ही होगा| मुशर्रफ का भाषण इस दिशा में उठा पहला कदम है|
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