R Sahar, 16 Feb 2003 : गुजरात और महाराष्ट्र के गॉंव-गॉंव में फैले ‘स्वाध्याय’ आंदोलन के एक स्तम्भ जगदीश भाई दिल्ली आए| उन्होंने बताया कि स्वाध्याय में दरार पड़ रही है| लाखों अछूतों, पिछड़ों, मछुआरों और किसानों के जीवन में उजियारा भरने वाला यह आंदोलन स्वयं अंधकारग्रस्त होता जो रहा है| इस आंदोलन के जन्मदाता पांडुरंग शास्त्री आठवले को लोग अवतारी पुरुष मानते हैं| उनकी सभाओं में 15-20 लाख लोगों की उपस्थिति साधारण सी बात है| यह मैंने अपनी ऑंखों से देखा है| पांडुरंगजी विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं| वे पांडित्य और कर्मठता के अनन्य उदाहरण हैं| उनका जीवन ढोंगरहित है| उनका सान्निध्य ही उन्नयनकारी है| पांडुरंगजी लोगों को सिर्फ यह मूल-मंत्र सिखाते हैं कि जो भगवान मेरे हृदय में हैं, वह ही तेरे हृदय में भी हैं| यह मंत्र उत्तर भारत एवं विदेशों में फैलता, उसके पहले ही उत्तराधिकार के प्रश्न ने आंदोलन में फूट डाल दी है| कहा जाता है कि ‘स्वाध्याय’ के पास दो करोड़ अनुयायी और 800 करोड़ रुपए हैं| पांडुरंगजी ने अपनी दत्तक-पुत्री (भतीजी) को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है| पुत्री के विरुद्घ आंदोलन के दिग्गजों ने चरित्र-हनन का अभियान चला दिया है| संसार को आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ानेवाला आंदोलन सांसारिकता में फंस गया है|
प्रधानमंत्री के सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र ने ‘इंडियाज नेशनल सिक्योरिटी 2002′ नामक ग्रंथ का विमोचन किया| गंरथ का संपादन प्रो. सतीश कुमार ने किया है| विमोचन की अध्यक्षता महाराज कृष्ण रसगोत्र को करनी थी| आधा घंटा प्रतीक्षा की लेकिन वे नहीं आस| रसगोत्र विदेश सचिव रह चुके हैं और ब्रजेश मिश्र से तीन साल वरिष्ठ भी| विमोचन-भाषण में ब्रजेशजी ने इराक के बारे में फिर वही कहा कि सद्दाम संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को लागू करे| सभा में अमरीकी राजदूत ब्लकविल भी मौजूद थे| एक अतिथि ने उठकर पूछा कि आप हेनरी कीसिंजर की तरह सुरक्षा सलाहकार हैं तो खुद बगदाद जाकर सद्दाम को क्यों नहीं पटाते? उन्होंने कहा, ‘जिसे अमरीका पीटने पर अमादा हो, उसे भारत कैसे पटाए?’
आजकल इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में भारत-नेपाल संवाद चल रहा है| दोनों देशों के नेपाल-विशेषज्ञ तरह-तरह के विषयों पर खुलकर विचार कर रहे हैं| आपसी बातचीत में वे जितने खुलते हैं, पता नहीं सेमिनार में क्यों नहीं खुलते| दोनों देशों के संबंध बहुत नाजुक जो हैं| नेपालियों को चिंता है कि भारत में नेपाल की छवि बिगड़ गई है| नेपाल को राजवंश हत्या, विमान अपहरण और पाकिस्तानी गुप्तचर जाल से जोड़ा जाता है| नेपालियों को विश्वास नहीं होता कि इन सबके बावजूद भारत में नेपाल के प्रति जो आत्मीय भाव है, वह किसी अन्य देश के लिए नहीं है| विदेश सचिव की स्पष्टवादिता ने शायद नेपालियों को हतप्रभ कर दिया है| नेपाली खुद बताएं कि माओवादियों का मुकाबला करने में वे भारत से कैसी मदद चाहते हैं|
अशोक चौहान के बेटे की शादी में जैसी चहल-पहल थी, वैसी दिल्ली में कम होती है लेकिन होती है, लेकिन जो नहीं होता, वह भी वहां हो रहा था| विशाल विवाह-परिसर में चारों तरफ बड़े-बड़े यज्ञ मंडप बने हुए थे| जब तक हजारों अतिथि नवविवाहितों को आशीर्वाद देते रहे, आहुतियों और वेदमंत्रों से वातावरण सुवासित होता रहा| अशोक चौहान और उनके तीनों भाई एक ही संयुक्त परिवार में रहते हैं| अब से 10-15 साल पहले तक जर्मनी के वे सबसे बड़े भारतीय उद्योगपति माने जाते थे| भारत आते ही उन्होंने अनेक विद्यालय और महाविद्यालय खोल दिए| भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को उत्तम बनाने की अनेक योजनाएं उनके मन में हैं| अनेक वर्षों के विदेश प्रवास और अथाह सम्पन्नता के धनी होने के बावजूद संपूर्ण परिवार की विनम्रता ज्यों की त्यों बरकरार है| पूरा परिवार मांस, मदिरा और दुराचार से मुक्त है| अशोकजी की माता वेदवतीजी ने जब प्राण छोड़े तो वे यज्ञ की पूर्णाहुति करते हुए अंतिम मंत्र ‘सर्वं वै पूर्ण…’ पढ़ रही थीं|
दार्शनिकों का काम क्या है? सिर्फ वायव्य विचारों में खोए रहना या दीन-दुनिया की भी खबर लेना? कार्ल मार्क्स ने कभी कहा था कि ‘दार्शनिकों का काम सिर्फ संसार की व्याख्या करना नहीं है, उसे बदलना भी है|’ बदलने के इच्छुकों में कार्ल पॉपर का नाम प्रमुख है| 1902 में वियना में जन्मे कार्ल पॉपर 92 साल की आयु तक सतत सोचते और लिखते रहे| उन्होंने 20वीं सदी के राजनीति-दर्शन पर गहरा प्रभाव डाला| पॉपर के मित्र और दिल्ली विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक गिरधारीलाल पंडित ने इस हफ्ते एक नई किताब मुझे दी, जिसे कनाडा के प्रो. केल्विन हाएस ने लिखा है| नाम है – ‘फालिबिलिज़्म, डेमक्रेसी एंड द मार्केट’| इस पुस्तक में पॉपर के विचारों की दार्शनिक समीक्षा तो है ही, यह प्रयत्न भी है कि इमेनुअल कांट, प्लेटो और पॉपर की ऐसी पॉट-पूरी (भेल-पूरी) बनाई जाए कि 21वीं सदी की प्लेट भर जाए| जाहिर है कि इस विवेचन में हीगल और मार्क्स के साथ-साथ फ्रांसिस फुकुयामा और सेमुअल हटिंगटन की मान्यताओं पर भी विचार किया गया है| हाएस का मानना है, पॉपर की तरह कि 21वीं सदी उदारवादी लोकतंत्र की सदी होगी| पॉपर की प्रसिद्घ रचना ‘मुक्त समाज और उसके शत्रु’ में जिन ‘वाम’ और ‘दक्षिण’ के शत्रुओं का उल्लेख है, वे तो अब कबि्रस्तान पहॅुंच गए हैं लेकिन उदारवादी लोकतंत्र में कई नये रूप, नये प्रश्न और नए समाधान उभर रहे हैं| हाएस की इस पुस्तक को समाज और राजनीति के गंभीर अध्येता जरूर पढ़ेंगे लेकिन असली मुद्दा यही है कि दुनिया की ज्वलंत समस्याओं का सीधा और ठोस समाधान सुझाने में हमारे वर्तमान दार्शनिक कतराते क्यों हैं? इस तरह की गुरुगंभीर किताबें पढ़ना किसी भी राजनीतिज्ञ के लिए काले पानी की सजा से कम नहीं है| अगर वह पढ़ भी ले और समझ भी ले तो उसे समाधान तो खुद ही खोजने होंगे| यह खोज उसकी अपनी होगी| इस प्रक्रिया में दार्शनिक कहीं खो नही जाएगा?
टोरंटो से लता पाडा आजकल दिल्ली आई हुई हैं| लता पाडा ने उत्तर अमरीका क्षेत्र में अपनी नृत्यकला से धूम मचाई हुई है| भारत में उनका कार्यक्रम हुए आठ साल हो गए| अब वे दुबारा दल-बल सहित भारत में अपना जौहर दिखाना चाहती हैं लेकिन दिक्कत यह है कि वे केनेडियन नागरिक हैं| इसीलिए भारत सरकार की संस्था ‘भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद्र’ उन्हें अपना तत्वावधान प्रदान नहीं कर सकती| कलाकार भारतीय हैं, कला भारतीय है और दर्शक भी भारतीय हैं फिर भी उन्हें भारत सरकार तत्वावधान नहीं दे सकती तो फिर प्रवासी सम्मेलन किसलिए किया, उसने?
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