नया इंडिया, 26 अगस्त 2014: संघ लोक सेवा आयोग के अधिकारी कितने निल्र्लज और ढींठ है, इसका प्रमाण है, सी सेट का ताजा प्रश्न-पत्र! 24 अगस्त को हुई परीक्षा में देश के 4.50 लाख छात्र बैठे थे। उन्हें जो प्रश्न-पत्र दिया गया, उसे आप देखें तो दांतों तले उंगली दबा लेंगे। आयोग की तरफ से सरकार ने संसद को जो आश्वासन दिए थे, इस प्रश्न-पत्र ने उनकी धज्जियां उड़ा दी हैं। सरकार ने दो आश्वासन दिए थे। एक तो यह कि 22.5 नंबरों के जो प्रश्न केवल अंग्रेजी में होते हैं, उनके जवाब छात्रों को नहीं देने होंगे। याने 200 नंबर के पर्चे में से 22.5 नंबर निकाल दिए जाएंगे। लेकिन हुआ क्या? हुआ यह कि इस बार अंग्रेजी के प्रश्नों की संख्या 9 से घटाकर 6 कर दी गई। याने 22.5 नंबरों के बजाय छात्रों को 15 नंबरों की ही छूट मिलेगी। 7.5 नंबरों की यह ठगी आयोग ने किससे पूछकर की? ठगी का साफ मतलब तो यह है कि आयोग को उस मंत्री की इज्जत का कोई ख्याल नहीं है, जिसने सीना तानकर 22.5 अंकों के अंग्रेजी प्रश्नों की छूट की घोषणा की थी।
इसके अलावा सवाल पूछने में भी कई धांधलियां की गई हैं। हर बार 6 से 8 सवाल ऐसे पूछे जाते हैं, जिनसे छात्रों की निर्णय-क्षमता, समस्या-समाधान क्षमता और पारस्परिक संपर्क की क्षमता का मूल्यांकन होता है। इस बार इस तरह के सवाल पूछे ही नहीं गए। इसी तरह गणित जैसे विषयों से संबंधित 47 सवाल पूछे गए जबकि प्रायः 40 सवाल पूछे जाते हैं। छात्रों की बौद्धिक अभिरुचि से संबंधित 6-7 सवाल हर साल पूछे जाते हैं। वे भी इस बार नदारद थे। दूसरे शब्दों में, ‘सीसेट’ के पर्चे पर जो सबसे गंभीर आपत्ति थी, उसने अब पहले से भी अधिक भयंकर रुप धारण कर लिया है। करेला और नीम चढ़ा। आंदोलनकारी छात्रों की एक बड़ी मांग यह थी कि ‘सीसेट’ के सवालों का चरित्र बदला जाए। उनका झुकाव ऐसा होता है, जिससे गणित और विज्ञान के छात्रों को जरुरत से ज्यादा फायदा मिलता है और समाजशास्त्रों और कला के छात्रों को अनावश्यक नुकसान होता है।
इतना ही नहीं, इस पर्चे में हिंदी भाषी छात्रों के लिए जो प्रश्न पूछे गए हैं, वे मूल हिंदी में नहीं हैं। अंग्रेजी में हैं। उनका हिंदी अनुवाद इतना भ्रष्ट है कि उसकी सजा यही हो सकती है कि इस आयोग को तुरंत भंग कर दिया जाए और उसकी जगह देशभक्त अधिकारियों को नियुक्त किया जाए। आयोग ने जो भ्रष्ट अनुवाद किया है, उसने संसद के मुंह पर कालिख पोत दी है, उसने हिंदी का अपमान किया है, उसने राजभाषा को ठोकर लगाई है और लाखों छात्रों को चुनौती दी है कि वे गुलामी के इस गढ़-आयोग-को उखाड़ फेंके या यह सुधरे। कई हिंदी अखबारों ने भ्रष्ट अनुवाद के नमूने पेश किए हैं। उन्हें मैं दोहरा नहीं रहा हूं लेकिन पूछता हूं कि अब इन छात्रों को सरकार क्या जवाब देगी? इन छात्रों को आंदोलन स्थगित करने के लिए मैं बराबर समझाता रहा लेकिन मैं अब इनसे कैसे कहूंगा कि यह नरेंद्र मोदी की सरकार है? यह तो मनमोहनसिंह की सरकार से भी ज्यादा अकर्मण्य और दब्बू सरकार निकली! तीन हफ्ते वह मंत्री क्या करता रहा, जिसने संसद को भरोसे में रखा? जरुरी यह है कि ‘सीसेट’ के पर्चे को अब पूरी तरह बदला जाए। उसे मूल हिंदी में बनाया जाए। सभी भारतीय भाषाओं में वह उपलब्ध हो। यह प्रधानमंत्री की पहली परीक्षा है। यदि वे इसमें असफल होते हैं तो मान लीजिए कि इस सरकार के नीचे लुढ़कने की यात्रा शुरु हो गई है। मुझे विश्वास है कि मोदी ऐसा नहीं होने देंगे।
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