नया इंडिया, 29 जुलाई 2014: भारत अपनी विदेश नीति में कठोर और दृढ़ रवैए के लिए नहीं जाना जाता है। वह गुट-निरपेक्ष नीति का सबसे बड़ा प्रवक्ता रहा है। इसीलिए माना जाता है कि किसी भी अन्तरराष्ट्रीय महत्व के मामले पर उसका रवैया दो-टूक नहीं होता। वह ऐसी ठकुरसुहाती मुद्रा धारण करता है कि उससे राम भी खुश और रावण भी खुश हो जाता है। गंगा गए तो गंगादास और जमना गए तो जमनादास!
लेकिन विश्व व्यापार संगठन के मामले में भारत ने गजब की दृढ़ता दिखाई है और इस दृढ़ता का मुख्य श्रेय मनमोहनसिंह-सरकार को है। अन्य मामलों में दब्बू और भ्रष्ट सिद्ध हुई सरकार ने हमारे किसानों की रक्षा के लिए दुनिया के बड़े-बड़े देशों के दबाव को दरकिनार कर दिया। हमारे पूर्व-व्यापार मंत्री आनंद शर्मा ने इस संगठन के सदस्य देशों को पिछले साल साफ-साफ कह दिया कि भारत उनके कहने से अपने किसानों की सहायता बंद नहीं करेगा। भारत सरकार खेती के मामले में मुक्त बाजार की पूंजीवादी प्रतिस्पर्धा को मान्यता नहीं देगी, क्योंकि ऐसा करने से हमारे गरीब किसान बुरी तरह मारे जाएंगे और हमारे देश की खेती चैपट हो जाएगी।
इस संगठन के राष्ट्र चाहते हैं कि खेती से पैदा होनेवाली सभी चीज़ें सारी दुनिया में आएं-जाएं, खरीदी-बेची जाएं। उन पर किसी की रोट-टोक न हो। कोई खास टैक्स वगैरह न लगाए जाएं। इसका फायदा यह होगा कि आम आदमियों को खाद्य-सामग्री बहुत सस्ते दामों पर मिल जाया करेगी। यह तर्क बड़ा मासूम दिखाई पड़ता है। यह तर्क देनेवाले देशों को क्या पता नहीं है कि भारत-जैसे देशों के किसानों की हालत क्या है? मुनाफा कमाना तो दूर, खेती की आमदनी से वे अपना पेट भी नहीं भर पाते। हजारों किसान कर्ज के बोझ से दबकर आत्महत्या करते हैं। ऐसे में उन्हें सिर्फ 10 प्रतिशत की सहायता देना काफी नहीं है, जैसा विश्व व्यापार संगठन कहता है। इसके अलावा आपात स्थिति से निपटने के लिए अन्न-भंडारण आदि भी बंद करने पड़ेंगे। मालदार देश भी अपने किसानों की अदृश्य और अप्रत्यक्ष मदद जमकर करते हैं। ऐसे में भारत अपने किसानों को सिर्फ मरने से बचाना चाहता है। इस पर भी उन देशों को एतराज है। यह ठीक है कि इस संगठन की आम राय का विरोध करने पर भारत को खेतिहर वस्तुओं के आयात-निर्यात में कई परेशानियां का सामना करना पड़ेगा लेकिन मोदी सरकार भी इस मुद्दे पर डटी हुई है। यह पिछली सरकार के मुकाबले काफी मजबूत सरकार है। यह अपनी बात मजबूती से रखे और भारत के दृष्टिकोण को उन देशों से मनवाए और अगर वे न मानें तो और भी मजबूती से डटी रहे।
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