यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति के इतिहास की विलक्षण घटना है। दूसरे महायुद्ध के बाद रुस और अमेरिका हमेशा एक-दूसरे के प्रतिद्वंदी बने रहे। कभी वे जर्मनी, कभी क्यूबा, कभी वियतनाम और कभी अफगानिस्तान में एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ते रहे और जब वह शीत-युद्ध थम गया तो भी वे परस्पर-विरोधी ताकतों का समर्थन करते रहे, जैसे कि वे आजकल सीरिया में करते रहे हैं। यदि रुस सीरिया के शासक बशर अल-असद का समर्थन करता रहा तो अमेरिका असद के बागियों की मदद करता रहा लेकिन ऐसा अब पहली बार हुआ है कि दोनों महाशक्तियों ने मिलकर एक समान शत्रु से लड़ने का संकल्प प्रकट किया है।
यह समान शत्रु है – निजामे-मुस्तफा या इस्लामी राज्य या दाएश (आईएसआईएस)! इन इस्लामी आतंकवादियों को इस बात का श्रेय है कि उन्होंने इन दोनों विश्व-शक्तियों को एक ही मंच पर ला खड़ा किया है।
अमेरिका के विदेश मंत्री जॅन केरी और रुस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने युद्ध-विराम का एक समझौता किया है, जो सोमवार से लागू होगा। इस समझौते के मुताबिक असद की फौजें और नुस्रा मोर्चे के छापामार अगले एक हफ्ते तक एक-दूसरे पर हमले नहीं करेंगे और एलेप्पो शहर में जो कि युद्धग्रस्त है, नागरिकों को मदद पहुंचाने देंगे।
इस बीच रुस और अमेरिका एक संयुक्त कमेटी बनाएंगे, जो असद और बागियों के इलाके निर्धारित करेंगे ताकि ये दोनों मिलकर दाएश के आतंकवादियों से लड़ सकें। अभी तक रुस की फौजें असद-विरोधियों पर बम बरसा रही थीं और उन विरोधियों को अमेरिका, यूरोपीय देश और सउदी अरब वगैरह सक्रिय मदद कर रहे थे। इसका फायदा दाएश के आतंकवादी उठा रहे थे। नतीजा यह हुआ कि पिछले पांच साल में पांच लाख लोग मारे गए, लाखों लोग सीरिया छोड़कर बाहर भाग गए और लगभग आधी आबादी विस्थापित हो गई।
यदि यह समझौता सफल हो गया तो लाखों लोगों को राहत मिलेगी और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में महाशक्ति-सहयोग के एक नए युग का सूत्रपात होगा। दोनों महाशक्तियां मिलकर अगर दाएश से लड़ेंगी तो दाएश का टिक पाना असंभव हो जाएगा। यदि दाएश खत्म होता है तो दुनिया के मुस्लिम देशों को चैन से जीने का मौका मिलेगा।
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