डेरा सच्चा सौदा के मुखिया गुरमीत राम रहीम सिंह को अदालत ने बलात्कार और यौन-शोषण के मामले में दोषी ठहराया है, उसे अभी सजा भी नहीं दी है लेकिन इस खबर को सुनते ही हरियाणा और पंजाब में कई लोगों ने अपनी जानें दे दी, हजारों लोग जगह-जगह धरना दिए हुए हैं, फौज और पुलिस से भी नहीं डर रहे हैं, कारें जला रहे हैं, स्टेशनों में आग लगा रहे हैं, पत्रकारों को धकिया रहे हैं।
आखिर इसकी वजह क्या है ? ऐसा जन-आक्रोश तो नेताओं के लिए भी कम ही देखने में आता है। इसका सबसे बड़ा कारण तो हमारे देश में फैला अंध विश्वास है। किसी भी ऐरे-गेरे-नत्थू गैरे को हम भगवान, महात्मा, संत, साधु, बाबा, कहने लगते हैं और उसकी पूजा शुरु कर देते हैं। उसमें फिर सब गुण ही गुण दिखाई देते हैं लेकिन ऐसा भी होता है कि इस तरह के लोग जन-कल्याण के इतने ज्यादा अभियान चलाए रहते हैं कि आम जनता का ध्यान सिर्फ उन पर ही टिका रहता है।
इन ‘महापुरुषों’ के दोषों की तरफ उनका ध्यान जाता ही नहीं है। जैसे कि कहा जाता है कि राम-रहीम ने मुफ्त इलाज करने वाले अस्पताल, मुफ्त स्कूल, मुफ्त भोजनालय आदि कई अभियान चला रखे हैं। ठीक है, ऐसे लोग भी दिन में पुण्य करते हैं और उनकी रात पाप में बीतती है। यदि उनके पापों की उनको सजा मिलती है तो उनमें इतना साहस होना चाहिए कि उस सजा को वे सहर्ष झेल सकें।
राम रहीम ने यही किया है। बीमारी के बावजूद अदलत में उपस्थित होना और उसका सम्मान करना अच्छी बात है लेकिन उसके अनुयायी तो अंधविश्वासी हैं। वे मरने-मारने पर उतारु हैं। वे बेरहम और बेलगाम हैं। यहां सवाल सरकारों के निकम्मेपन का भी उभरता है। केंद्र सरकार, हरियाणा और पंजाब की सरकारों ने भीड़ को भगाने का इंतजाम पहले से क्यों नहीं किया ? क्योंकि हमारे नेता वोटों के भिखारी हैं। उन्हें इन ‘गुरुओ’ के इशारे पर थोक वोट मिल जाते हैं। वे इन्हें नाराज़ नहीं कर सकते ? उनका बर्ताव शासक का नहीं, याचक का होता है। अब यदि राम-रहीम के भक्त बेलगाम हिंसा करेंगे तो पता नहीं कितनों की बलि चढ़ेगी। इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा ?
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