भारत में हर घंटे 17 आदमी मरते हैं, सड़क दुर्घटना में ! साल भर में लगभग डेढ़ लाख लोग कारों, ट्रकों और बसों की चपेट में आ जाते हैं। दो साल पहले एक केंद्रीय मंत्री भी कार-दुर्घटना में मारे गए थे। साधारण लोगों के कार-दुर्घटना में मरने पर कोई खबर भी नहीं बनती। उनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है। अब हमारे परिवहन मंत्री नितीन गडकरी नया मोटरगाड़ी कानून बना कर ऐसी व्यवस्था लाना चाहते हैं कि देश में कार-दुर्घटनाओं पर काबू पाया जा सके। उनकी सदिइच्छा का मैं स्वागत करता हूं लेकिन सारे कुए में ही भांग पड़ी हुई है। वे अपनी बाल्टी से शुद्ध पानी कैसे निकालेंगे?
कार, ट्रक, बस, ट्रेक्टर वगैरह चलाने वाले लोग कौन हैं ? वे बाकायदा चालक नहीं हैं। ड्राइवर नहीं हैं। उन्होंने ड्राइवरी का प्रशिक्षण नहीं लिया है। जब वे कार चलाएंगे तो अंदाज से ही चलाएंगे। तो क्या आश्चर्य है कि वे अपनी कार सड़क चलते लोगों पर न चढ़ा दें या उसे दूसरे वाहनों से न भिड़ा दें।
सबसे दुखद तथ्य तो है कि भारत में जिन लोगों को वाहन चलाने का लायसेंस मिलता है, उनमें से ज्यादातर की परीक्षा ही नहीं ली जाती। वे इंस्पेक्टरों को घूस देते हैं और उन्हें प्रमाण-पत्र मिल जाता है कि वे गाड़ी चलाना जानते हैं, उन्हें सड़क के सिग्नलों का न ज्ञान है और न वे सड़क की सभी सावधानियों से अवगत हैं। लायसेंस मिलते ही ऐसे लोग भावी हत्यारें के रुप में सड़क पर दनदनाने लगते हैं।
अभी एक सर्वेक्षण से पता चला है कि जयपुर के 73 प्रतिशत, गुवाहाटी के 64 प्रतिशत, दिल्ली के 54 प्रतिशत और मुंबई के 50 प्रतिशत लायसेंसधारी ऐसे हैं, जिन्होंने ड्राइविंग टेस्ट नहीं दिया। जो ड्राइविंग टेस्ट देते हैं, उनमें से भी ज्यादातर लोगों को धुप्पल में पास कर दिया जाता है। देश में लगभग 1000 आरटीओ हैं, जो औसत 30-40 लायसेंस रोज देते हैं। कई दफ्तर एक दिन में सवा सौ-डेढ़ सौ लायसेंस तक जारी कर देते हैं। यह असंभव है।
याने खुले-आम भ्रष्टाचार होता है। इसका एक हल तो यह है कि हर जिले में वाहन-चालन केंद्र खोले जाएं, उनके प्रमाण-पत्र मांगे जाएं और फिर कठोर ड्राइविंग टेस्ट लिया जाए। लायसेंस देने में जो भी भ्रष्टाचार करें, उन्हें सजा यह मान कर दी जाए कि भावी वाहन-दुर्घटना में होने वाली हत्या के लिए वे भी जिम्मेदार हैं। वाहन-दुर्घटना पर काबू पाने के लिए शराबबंदी भी उतनी ही जरुरी है।
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