हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज दिल्ली में बैठे-बैठे वह काम कर रही हैं, जो कई विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री उन देशों में जा कर भी नहीं कर पाते। मुझे पाकिस्तान से कई पत्रकारों और नेताओं के संदेश आए कि आपकी बहन सुषमाजी कितनी दयालु हैं कि उन्होंने हमारे रोगी नगारिकों को वीज़ा दिलाने के लिए अपने नियम ढीले कर दिए।
सुषमाजी जब 1998 में पहली बार पाकिस्तान गईं तो उनका मैंने प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ, बेनजीर भुट्टो और सरताज़ अजीज़ से भी परिचय करवाया था। पाकिस्तानी नेता लोग सुषमाजी की बातचीत और हाव-भाव से बहुत प्रभावित हुए। बेनजीर ने तो मुझसे कहा कि ‘यह सुंदर महिला प्रधानमंत्री के लायक हैं।’ वे जिस दिन दिल्ली आईं, उस दिन सुषमा स्वराज का जन्म दिन था। मैंने उन्हें बताया तो वे गुलदस्ता लेकर सबसे पहले उनके घर गईं।
अब सुषमाजी ने किसी भी पाकिस्तानी नागरिक को इलाज़ के लिए भी वीज़ा देने की जो शर्त लगाई थी, याने वे अपने वास्तविक विदेश मंत्री सरताज़ अजीज़ से चिट्ठी लिखवाएं, वह भी हटा ली। अजीज को जो चिट्ठी सुषमाजी ने कुलभूषण जाधव की मां को वीज़ा देने के लिए लिखी थी, उसका उन्होंने जवाब तक नहीं दिया। इसके बावजूद उन्होंने रावलकोट के उसामा अली को अपने ‘लीवर ट्रांसप्लांट’ के लिए वीज़ा की मंजूरी दे दी। सारे पाकिस्तान के लोग गदगद हैं। उनके दिल से सुषमा स्वराज के लिए दुआ निकल रही है लेकिन अफसोस की बात है कि सुषमा स्वराज को एक असली विदेश मंत्री की तरह काम ही नहीं करने दिया जा रहा है।
यह ठीक है कि यदि मोदी उन्हें अपने साथ विदेश-यात्राओं पर ले जाएं तो उन पर पड़ने वाला फोकस बहुत घट सकता है, क्योंकि दोनों की योग्यता में काफी अंतर है। लेकिन देश का लाभ बढ़ सकता है। इस अंदरुनी मामले से मोदी और सुषमा निपटें लेकिन उसामा को वीज़ा देते समय सुषमा ने पाक कब्जे के कश्मीर के बारे में जो बयान दे दिया, वह वैसा ही है, जो मैं पाकिस्तान की गोष्ठियों और मुलाकातों में वर्षों से देता रहा हूं याने कि आप जिसे ‘आजाद कश्मीर’ कहते हैं, वह तो हमारा अंग है लेकिन सुषमाजी का यह कहना हमारी सरकार को मुसीबत में फंसा सकता है कि वह कश्मीर हमारा अंग है, इसलिए उसके नागरिकों को भारत आने के लिए वीज़ा की जरुरत नहीं है।
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