देवी अहिल्याबाई होल्कर की नगरी एवं मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक व व्यवसायिक राजधानी इन्दौर ने भारत देश को अनेक महान विभूतियों से नवाजा है। इनमें से कुछ मुख्य नाम है स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर, प्रसिद्ध चित्रकार एम. एफ. हुसैन, उर्दू कवि राहत इन्दौरी और फिल्म कलाकार जाॅनी वाकर। साहित्य और पत्रकारिता को इन्दौर शहर ने पूरे भारतवर्ष में नये आयाम और ऊंचाईयाॅं दी है। इन आयामों और ऊंचाईयों में अपना योगदान देने वालों में प्रसिद्ध नाम है श्री राजेंद्र माथुर, श्री प्रभाष जोशी, माननीय श्री नरेश मेहता और डाॅ. वेद प्रताप वैदिक।
इस लेख में विवेचना का विषय है डाॅ. वेद प्रताप वैदिक का विवेक और विरोध। इस विवेचना की आवश्यकता का मुख्य कारण है हाल ही में डाॅ. वेद प्रताप वैदिक द्वारा उनकी पाकिस्तान यात्रा के दौरान दुनिया के सबसे खूंखार माने जाने वाले आतंकवादी हाफिज़ मुहम्मद सईद से मुलाकात व उसका साक्षात्कार लेना। यह मुलाकात एवं साक्षात्कार इक्कीसवीं शताब्दी की सबसे चर्चित मुलाकात और साक्षात्कार कहा जाएगा। क्योंकि हाफिज़ सईद जमायते-उद्-दावा संगठन का मुखिया है और उसके सम्बन्ध आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से है। हाफिज़ सईद 26.11.2008 को मुंबई पर हुए हमले का सूत्रधार माना जाता है। जमाते-उद्-दावा और हाफिज़ सईद को भारत सहित अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपियन यूनियन, रूस और आस्ट्रेलिया ने आतंकवादी माना है। अमेरिका ने हाफिज़ सईद पर 10 मिलियन डाॅलर का ईनाम रखा है। भारत अनेक बार हाफिज़ सईद को सौपने की माॅंग पाकिस्तान से कर चुका है। संयुक्त राष्ट्र संघ जमायते-उद्-दावा को प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन घोषित कर चुका है। इस सबके बावजूद हाफिज़ सईद न केवल पाकिस्तान में स्वतंत्र रूप से रह रहा है और घूम रहा है बल्कि पाकिस्तान की तरफ से उसे सुरक्षा व उसके संगठन को चलाने की खुली छूट भी मिली हुई है। ऐसे में यदि डाॅ. वेद प्रताप वैदिक विश्व के सबसे खूॅंखार माने जाने वाले आतंकवादी हाफिज़ सईद से मुलाकात व उसका साक्षात्कार करते है तो भारत में डाॅ. वैदिक का विरोध होना स्वाभाविक ही है। लेकिन विरोध करने वाले उनके विवेक पर भी प्रश्न चिन्ह लगायेंगे यह एक व्यक्ति की अभिव्यक्ति का हनन करने का प्रयास है। सबसे पहले विरोध के स्वर फूटे कांगे्रस नेताओं और राहुल गाॅंधी के श्रीमुख से। उन्होंने कहा कि डाॅ. वेद प्रताप वैदिक राष्ट्रीय स्वयं संघ के आदमी है और हाफिज़ सईद से उनकी मुलाकात भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के किसी गुप्त ऐजेंडे के तहत हुई है। इस पर भाजपा सरकार के मंत्री श्री अरूण जेटली को संसद में वक्तव्य देना पड़ा कि डाॅ. वेद प्रताप वैदिक की हाफिज़ सईद से मुलाकात व साक्षात्कार का भारत सरकार से कोई संबंध नही है। विपक्षी राजनैतिक दलों का हो-हंगामा बढ़ा तो अचानक शिव सेना भी हरकत में आ गई, और डाॅ. वेद प्रताप वैदिक की गिरफ्तारी व उनसे पूछताछ की माॅंग करने लगी। विवश होकर भारत सरकार की विदेश मंत्री श्रीमति सुषमा स्वराज को भी संसद में सफाई देनी पड़ी कि इस मुलाकात व साक्षात्कार से भाजपा सरकार न केवल स्वयं को अलग करती है बल्कि इसे अमान्य भी करती है। भला मीडिया जगत इससे कैसे अछूता रहता? टेलीविज़न न्यूज चैनलों ने अपनी टी.आर.पी. बढ़ाने की होड़ में भाषा और संबोधन की शिष्टता की सभी हदें पर कर दी। डाॅ. वेद प्रताप वैदिक के विवेक पर प्रश्नचिन्ह लगाने और उनका विरोध करने में न्यूज़ चैनल एक-दूसरे को पछाड़ते दिखे। यह सब इसके बावजूद हुआ कि डाॅ. वेद प्रताप वैदिक ने बड़ी साफगोई और विस्तार से सभी न्यूज़ चैनलों को उनकी हाफिज़ सईद से मुलाकात व साक्षात्कार के बारे में बताया। यहाॅं तक कि अन्ततः डाॅ. वेद प्रताप वैदिक को एक सामूहिक प्रेस कान्फ्रेंस करनी पड़ी। परंतु उनके विवेक पर प्रश्नचिन्ह लगाने और उनका विरोध करने वाले नौसिखिए पत्रकार टी.आर.पी. के चक्कर में रूकने का नाम ही नही ले रहे। किसी ने उन्हें देशद्रोही कहा तो किसी ने पाकिस्तान का एजंेट तो किसी ने उन्हें गिरफ्तार करने की माॅंग की तो किसी ने उन्हें पाकिस्तान भेज देने की सलाह दी।
इस पूरे हंगामें और विरोध के बीच में जो मूल प्रश्न पीछे छूट गया वह यह है कि किसी ने ये जानने का प्रयास नही किया कि डाॅ. वेद प्रताप वैदिक ने अपनी जान जोखिम में डालकर विश्व के सबसे खूॅखार माने जाने वाले आतंकवादी हाफिज़ सईद से मुलाकात क्यों की? उनका साक्षात्कार क्यों लिया? इस मुलाकात व साक्षात्कार के पीछे उनका मंतव्य क्या है? नौसिखिए पत्रकारों ने ये भी जानने की कोशिश नही की कि डाॅ. वेद प्रताप वैदिक कौन है? क्या ऐसा व्यक्ति देशद्रोह कर सकता है? क्या ऐसा व्यक्ति अपने विवेक को खो सकता है? यह बहुत ही दुखद है कि बस भेड़ चाल में डाॅ. वेद प्रताप वैदिक पर प्रश्नचिन्ह लगाये जा रहे है और उनका विरोध हो रहा है। 30 दिसंबर 1944 को इंदौर में जन्में, पले और बढ़े डाॅ. वेद प्रताप वैदिक अद्वितीय एवं बहुआयामी प्रतिभा के धनी है। अध्ययनकाल में उन्हें राष्ट्रीय प्रतिभा छात्रवृत्ति, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की छात्रवृत्ति एवं इंडियन काउंसिल आॅफ सोषल साइंस रिसर्च की छात्रवृत्ति प्राप्त हुई। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से “अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिका प्रतिस्पर्धा” विषय पर पी.एच.डी. प्राप्त की और वे राष्ट्रीय एशिया मामलों के विशेषज्ञ माने जाते है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, इन्स्टीट्यूट आॅफ डिफेंस स्टडीज़ एण्ड एनालिसिस, विंसकोन्सीन यूनीवर्सिटी, कोलंबिया यूनिवर्सिटी, लंदन स्कूल आॅफ ओरियण्टल स्टडीज़, मास्को साइंस एकेडमी और काबुल यूनिवर्सिटी में अध्यापन कार्य किया। अपने शैक्षणिक एवं अन्य कूटनीतिक आमंत्रणों पर डाॅ. वेद प्रताप वैदिक 80 से ज्यादा देशों की यात्रा कर चुके है। 1999 में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय प्रतिनिधी के तौर पर उन्होंने व्याख्यान दिया। उनके अनेक देशों के राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और विदेश मंत्रियों से व्यक्तिगत परिचय है। उनकी दो दर्जन से अधिक पुस्तकें और हजारों लेख व संपादकीय टिप्पणी अभी तक प्रकाशित हो चुकी है। शैक्षणिक एवं कूटनीतिक योगदान के अतिरिक्त, पत्रकारिता के क्षेत्र में भी डाॅ. वेद प्रताप वैदिक का योगदान अप्रतिम है। डाॅ. वेद प्रताप वैदिक 10 वर्षों तक पी.टी.आई. (भाषा) के संस्थापक संपादक रहे। नवभारत टाइम्स में वे विचार संपादक रहे। वर्तमान में लगभग 200 राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों में उनके लेख छपते है। दूरदर्शन और आकाशवाणी पर उनके अगणित कार्यक्रम और साक्षात्कार प्रसारित हो चुके है। वे हिन्दुस्तान समाचार एजेंसी के भी निदेशक रहे। इसके अतिरिक्त वे कौसिल फाॅर इंडियन फाॅरेन पाॅलिसी के अध्यक्ष, भारतीय भाषा संमेलन के अध्यक्ष, नेशनल बुक ट्रस्ट आॅफ इंडिया के ट्रस्टी, हिन्दी पत्रकारिता समिति के अध्यक्ष, अंग्रेजी हटाओ सम्मेलन के सचिव और रेल विदेश, रक्षा एवं पेट्रोलियम मंत्रालय में हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य रहे है। डाॅ. वेद प्रताप वैदिक को अनके सम्मान व पुरस्कार मिल चुके हैं। उनमें मुख्य है विष्व हिन्दी सम्मान, महात्मा गाॅंधी सम्मान, दिनकर शिखर सम्मान, पुरूषोत्तमदास टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार, हिन्दी अकादमी सम्मान, लोहिया सम्मान, काबुल विश्वविद्यालय पुरस्कार, मीडिया इंडिया सम्मान, लाला लाजपत राय सम्मान, मधुवन पुरस्कार और अध्ययनकाल में प्राप्त हुए अनेक पुरस्कार शामिल है। डाॅ. वेद प्रताप वैदिक हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत, पर्षियन, रषियन व उर्दू भाषा के विशेषज्ञ हैं।
शैक्षणिक, कूटनीतिक एवं पत्रकारिता के अतिरिक्त डाॅ. वेद प्रताप वैदिक का एक और व्यक्तित्व है सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का। उनका सांस्कृतिक राष्ट्रवाद इतना उच्चकोटि का है कि उसके चलते आज तक कोई भी राजनेता व राजनैतिक दल उन्हें अपने स्वार्थो से सम्मोहित नही कर सका। अन्यथा किसी विश्वविद्यालय का कुलपति या किसी प्रदेश का राज्यपाल या राज्यसभा का सदस्य या किसी देश में भारत के राजदूत आदि पद डाॅ. वेद प्रताप वैदिक की पहुंच से दूर नही रहे। वे अपनी साफगोई और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के लिए न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में जाने जाते है। बहुत ही साधारण जीवन व्यतीत करने और ज्यादातर फलाहार पर निर्भर रहने वाले डाॅ. वेद प्रताप वैदिक के राष्ट्रप्रेम और विवेक पर आज प्रश्न उठ रहे है, यह बहुत ही दुखद है। 12 वर्ष की अल्पायु में भाषा के प्रश्न पर पहली जेल यात्रा करने वाले डाॅ. वेद प्रताप वैदिक भाषा और छात्र आंदोलनों में अनेक बार जेल गये। 1966 में जवाहरलाल नेहरू विष्वविद्यालय के स्कूल आॅफ इंटरनेषनल स्टडीज़ में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का शोध ग्रंथ हिन्दी में लिखने पर उनका निष्कासन हुआ। डाॅ. वेद प्रताप वैदिक ने आंदोलन का रास्ता अपनाया। दो वर्ष तक संसद में इस मुद्दे पर अपूर्व हंगामा होता रहा। अंततः विजय डाॅ. वेद प्रताप वैदिक की हुई। पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। भारतीय भाषाओं के समर्थन में उन्होंने अनेक सम्मेलन आयोजित किये और अनेक आंदोलनों के सूत्रधार रहे। सरकार चाहे किसी भी राजनैतिक दल की हो, प्रधानमंत्री और मंत्री चाहे कोई भी हो – राष्ट्र निर्माण के मुद्दों पर अपनी प्रखर वाणी और विचारों को डाॅ. वेद प्रताप वैदिक बड़े ही निर्भीक रूप से रखते है। किसी भी तरह का प्रलोभन उन्हें डिगा नही सकता। कालाधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ डाॅ. वेद प्रताप वैदिक स्वामी रामदेव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खडे़ रहे। इतना ही नही रामलीला मैदान में दिल्ली पुलिस द्वारा आधी रात को सोते हुए आंदोलनकारियों पर जब लाठी प्रहार हुआ तो डाॅ. वेद प्रताप वैदिक ने इसकी घोर निंदा की और दिल्ली पुलिस एवं तत्कालीन काॅंग्रेसी सरकार के खिलाफ खड़े हो गए। यह ही नही अपितु डाॅ. वेद प्रताप वैदिक ने स्वामी रामदेव को रामलीला मैदान में हुए पुलिस प्रहार से उत्पन्न अवसादपूर्ण परिस्थिति से बाहर निकाला और उन्हें पूरे देश में घूमकर अपनी बात पुरजोर तरीके से आम जनता के बीच रखने के लिए प्रेरित किया। जब अरविंद केज़रीवाल और अन्ना हजारे में जनलोकपाल आंदोलन को लेकर फूट पड़ गई तो इन दोनों की आलोचना करने से भी डाॅ. वेद प्रताप वैदिक नही चूके। सरकार चाहे किसी की भी हो, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, भ्रष्टाचार और राष्ट्र निर्माण के मुद्दों पर डाॅ. वेद प्रताप वैदिक सरकारों की आलोचना करने से कभी नही चूकते। हाॅ, यदि कोई सरकार अच्छा काम करती है तो उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा भी करते है। जैसा कि डाॅ. वेद प्रताप वैदिक स्वयं कह चुके है कि हाफिज़ सईद से उनकी मुलाकात व साक्षात्कार का तात्पर्य एक पत्रकार के नाते उसका मंतव्य जानने का था और अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद के कारण दक्षिण एशिया में हो रहे खून खराबे की नसीहत भी देना था। डाॅ. वेद प्रताप वैदिक ने अपनी जान जोखिम में डालकर ये किया जो कि एक पत्रकार के नाते यह करने का उनका अधिकार है। इस पर राजनेताओं व नौसिखिए पत्रकारों का हो-हल्ला मचाना, डाॅ. वेद प्रताप वैदिक का विरोध करना और उनके विवेक पर प्रश्नचिन्ह उठाना कहाॅं तक उचित है? यदि अमेरिका व भारत सरकार को हाफिज़ सईद की इतनी चिंता है तो उस पर ईनाम रखने की क्या जरूरत है? सब जानते है कि हाफिज़ सईद कहाॅं रहता है और किस तरह खुला घूमता है। क्यों नही अमेरिका व भारत सरकार हाफिज़ सईद को पकड़ लेते? ठीक उसी तरह से जैसे अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को पकड़ा था। दाऊद इब्राहिम पर शिकंजा कसने के लिए भारत सरकार ने अब तक क्या किया है? क्या उसकी सम्पत्ति और भारत में हवाला रेकैट के जरिए चलने वाले उसके अवैध व्यापर पर रोक लगायी है? आज पूरे दक्षिण एशिया की स्थिति यह है कि दुनिया के आधे से ज्यादा गरीब दक्षिण एशिया में रहते है। गरीबी, भुखमरी, कुपोषण,शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाआंे का अभाव और महिलाओं पर अत्याचार व हिंसा दक्षिण एशिया की कुरूपताएॅं है। ऊपर से पूरा दक्षिण एशिया आतंकवाद से पीडि़त है। धर्म, जाति, नृजातीय एवं वर्ग संघर्ष दक्षिण एशिया में आम है। जीवन की गुणवत्ता के मापदंडों पर दक्षिण एषिया यूरोप और अमेरिका से वर्षों पीछे है। ऐसे में यदि डाॅ. वेद प्रताप वैदिक जोकि दक्षिण एशिया की कूटनीति, भाषाओं और संस्कृतियों के विषेषज्ञ है, शांति की बात करते है तो उनका विरोध और उनके विवेक पर प्रश्नचिन्ह उठाना कहाॅं तक उचित है? विश्व सभ्यताओं का इतिहास इस बात की साक्षी है कि युद्ध, खून-खराबे और आतंकवाद के बाद शांति स्थापना का एक ही माध्यम होता है और वो माध्यम है संवाद व संद्धि। दो विष्व युद्धों के बाद सबसे बड़ा नरसंहार यदि विश्वमें कहीं हुआ है तो वह आज़ादी व बटवारे के समय भारत व पाकिस्तान में हुआ है। इस बंटवारे में अंग्रेजों, पंडित जवाहरलाल नेहरू व मोहम्मद अली जिन्ना की क्या भूमिका रही इस पर अलग से विस्तार में चर्चा करूंगा। बटवारे के नरसंहार के बाद भारत व पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध हो चुके है। कश्मीर के मूल निवासी पीडि़त व व्यथित है। कश्मीरी पंडित वहाॅं से पलायन कर चुके है। पिछले 65 वर्षाें में कोई स्थायी समाधान नही निकल पाया। समाधान का एक ही रास्ता है – सभी को मिल बैठकर शांति वार्ताऐं अनवरत रूप से करनी होगी। कष्मीरी लोगों को विष्वास में लेना होगा। भारत व पाकिस्तान को अपनी सीमा रेखाऐं स्थायी रूप से चिन्हित करनी होगी। इसके बाद साझा व्यापार, षिक्षा, संस्कृति, मुद्रा व यातायात पर काम करना होगा। ये इतना आसान नही जितना इसे लिखना परंतु असंभव नही है। डाॅ. वेद प्रताप वैदिक जैसे विद्वानों व शांतिदूतों का योगदान दोनों देष की सरकारों को लेना होगा। दक्षिण एशिया के अच्छे भविष्य के लिए यही अपेक्षित है।
लेखक एशिया पैसिफेक इन्टरप्रीनियरशीप डेवलपमेंट इंस्टीटयूट के प्रेसीडेंट है
dr.naresh.singh@gmail.com
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