ईसाइयों के केथोलिक संप्रदाय में ब्रह्मचर्य का महत्व भारत के आर्यधर्मों से भी ज्यादा है। स्वयं ईसा मसीह अविवाहित थे। केथोलिक पादरी अपने अविवाहित रहने और ब्रह्मचर्य-पालन पर गर्व करते हैं लेकिन ईसाइयत के इतिहास में पादरियों ने जितना भ्रष्टाचारण किया है, किसी और धर्म के इतिहास में देखने को नहीं मिलता। पाखंड, अंधविश्वास और दुश्चारित्र्य के कारण ही सन 500 से लेकर 1500 तक के एक हजार साल का युग यूरोप में अंधकार-काल कहा जाता है। इसके ताजा प्रमाण अभी अमेरिका के पेनसिलवानिया नामक प्रांत के कुछ गिरजाघरों में मिले हैं। पता चला है कि लगभग 300 पादरियों ने लगभग 1000 अल्पायु बच्चों और बच्चियों के साथ बलात्कार और व्यभिचार किया है। यह तो वह संख्या है, जिनकी बाकायदा रपट लिखी गई है और जिनकी जांच हुई है और यह सिर्फ 6 गिरजाघरों की रपट है। अमेरिका और यूरोप के यदि हजारों गिरजों की रपटें इकट्ठी की जाएं और उनकी जांच को प्रकट कर दिया जाए तो रोम के पोप को हृदयाघात हो जाएगा।
मध्यकाल में तो पेरिस के एक पोप किसी वेश्या के घर मरे पाए गए थे। इधर पिछले दो-तीन पोपों ने अपने पादरियों के इस दुराचरण पर गहरी चिंता व्यक्त की है और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं। लेकिन इन निर्देशों का कुछ ठोस नतीजा निकलने की उम्मीद मुझे बहुत कम है, क्योंकि मर्ज़ कुछ और है और दवा कुछ और ! ईसाइ मठों में आजीवन ब्रह्मचर्य की जगह भारतीय पद्धति के अनुसार सिर्फ पहले 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का प्रावधान हो, फिर गृहस्थ का, फिर वानप्रस्थ का और संन्यास का तो वह अधिक व्यावहारिक होगा।
कोई स्वेच्छा से जीवनपर्यंत ब्रह्मचारी रहना चाहे तो जरुर रहे। वह तो अति उत्तम है लेकिन किसी पद की खातिर ब्रह्मचर्य रखने के दुष्परिणाम तो सबके सामने हैं। हमारे कई साधु-संन्यासी, मुसलमानों के मुल्ला-मौलवी और केरल के कई पादरी कुकर्म क्यों करते हैं ? वे जानते हैं कि उनकी कुत्ताफजीहत हो जाएगी, फिर भी वे क्यों करते हैं ? इसलिए करते हैं कि वे अपने पद को कुकर्म का लायसेंस समझ बैठते हैं और जीवन भर ब्रह्मचर्य या संन्यास का पाखंड करते हुए वासना में लिप्त रहते हैं। मैं समझता हूं कि यदि कोई धर्म-ध्वजी यदि ऐसे कुकर्मों में लिप्त पाया जाए तो उसकी सजा मृत्युदंड से कम न हो लेकिन आजीवन चलनेवाला ब्रह्मचर्य का ढोंग भी सब धर्मों को खत्म कर देना चाहिए।
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