17 मार्च 2014 : खबर है कि ‘आम आदमी पार्टी’ अब पैसे उगाहने के लिए ऐसी हरकतों पर उतर आई है, जिनका आम आदमी से कोई लेना—देना नहीं है। अब वह बड़े—बड़े शहरों में ऐसे पैसा—भोजों का आयोजन करेगी, जिसमें उसके नेताओं के साथ भोजन करनेवाले मालदार लोग अपने खाने के बादले 10—10 या 20—20 हजार रु. देंगे। इसे मैं प्रीति—भोज नहीं, पैसा—भोज कहता हूं। आम आदमी का इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है? क्या भारत का आम आदमी, जिसकी आय 100 रु. रोज से भी कम है, क्या वह 10—20 हजार रु. का डिनर खा सकता है? वह तो उस पांच—सितारा होटल में घुसने का सपना भी नहीं देख सकता, जिसमें आम आदमी पार्टी का नेता यह पैसा—भोज करेगा।
यह ठीक है कि इस पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान जितना पैसा जमा किया था, उतना पैसा तो क्या, उससे आधा भी लोकसभा चुनाव के लिए जमा नहीं कर पाई है। जबकि उसे उससे 100 गुना पैसे की जरुरत है। लोकसभा के लिए तीन सौ उम्मीदवारों को लड़ाना बच्चों का खेल नहीं है। ऐसे में उसका हताश हो जाना स्वाभाविक है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वह प्रवाहपतित हो जाए। उसने अपना हिसाब—किताब खुला रखकर अन्य पार्टियों से बेहतर काम किया था लेकिन अब पैसे जुटाने के नाम पर वह अपनी ही पार्टी के नाम को गारत क्यों कर रही है? भारतीय चुनाव में वह अमेरिका के पूंजीवादी दांव—पेंचों को अपनाकर अपने नकलचीपन की नुमाइश क्यों कर रही है? पैसा इकट्ठा करने का यह पैंतरा तो काला धन लेने से भी बुरा है। जो आदमी 20 हजार रु. एक डिनर पर खर्च करेगा, वह उतनी राशि चेक से दे या नक़द दे, वह धन सफेद या स्वच्छ कैसे हो सकता है? बिना अन्याय, बिना शोषण, बिना ठगी, बिना तिकड़म कोई आदमी इतना पैसे कैसे कमा सकता है कि वह एक डिनर पर 20 हजार रु. खर्च कर दे। अगर यह खर्च प्रतीक—मात्र है तो भी अनुचित है। आम आदमी पार्टी अपने आपको खास आदमी पार्टी क्यों बनाती जा रही है? उसका नेता निजी विमान में उड़ता है और 60 हजार रु. महिने के मकान में रहता है, यह कोई गुनाह नहीं है लेकिन सारे देश को इसका संदेश क्या जाता है? क्या यह नहीं कि यह आम आदमी पार्टी नहीं, आम नेता पार्टी है। इसके नेता भी आम नेताओं की तरह हैं। धीरे—धीरे वे उनसे भी आगे निकल जाएंगे।
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