नवभारत टाइम्स, 30 मार्च 2002 : ‘पोटो’ तो पारित होना ही था लेकिन जिस विधि से वह पारित हुआ, उसने भारत की दुखती रग को उधेड़ दिया है| आखिर संयुक्त अधिवेशन क्यों बुलाना पड़ा ? दोनों सदनों ने उसे अलग-अलग पारित क्यों नहीं किया ? वह राज्यसभा में क्यों गिर गया ? और लोकसभा में भी वह लगभग सर्वानुमति से पारित क्यों नहीं हुआ ? उस तरह पारित क्यों नहीं हुआ, जैसा कि अमेरिका में ‘देशभक्त कानून’ … [Read more...] about झुलसा हुआ पोटो और भग्नमन भारत
Archives for March 2002
सुखांत नाटक के कुछ दुखद प्रसंग
नवभारत टाइम्स, 10 मार्च 2002: सब मजे में हैं| कोई भी घाटे में नहीं| सेक्यूलरवादी खुश हैं कि अविवादित भूमि में भी पूजा नहीं हो पाई| सरकार खुश है कि गोलियाँ नहीं चलीं| साधु-संत खुश हैं कि उन्होंने आखिरकार पूजा कर ही ली| शिला-दान किसी ऐसे-वैसे ने नहीं, प्रधानमंत्र्ी के प्रतिनिधि ने स्वीकार किया| मुसलमान खुश हैं कि यथास्थिति बनी रही और दंगे नहीं हुए| सर्वोच्च न्यायालय खुश है कि … [Read more...] about सुखांत नाटक के कुछ दुखद प्रसंग
सुखांत नाटक के कुछ दुखद प्रसंग
नवभारत टाइम्स, 10 मार्च 2002: सब मजे में हैं| कोई भी घाटे में नहीं| सेक्यूलरवादी खुश हैं कि अविवादित भूमि में भी पूजा नहीं हो पाई| सरकार खुश है कि गोलियाँ नहीं चलीं| साधु-संत खुश हैं कि उन्होंने आखिरकार पूजा कर ही ली| शिला-दान किसी ऐसे-वैसे ने नहीं, प्रधानमंत्र्ी के प्रतिनिधि ने स्वीकार किया| मुसलमान खुश हैं कि यथास्थिति बनी रही और दंगे नहीं हुए| सर्वोच्च न्यायालय खुश है कि … [Read more...] about सुखांत नाटक के कुछ दुखद प्रसंग
कौनसे मुसलमानों को सबक सिखाया ?
नवभारत टाइम्स, 8 मार्च 2002 : गुजरात में जो हुए, वे दंगे नहीं थे| दंगों में मार-काट दोतरफ़ा होती है| यहाँ तो एकतरफा हमले हुए| पहले मुसलमानों ने एकतरफा हमला किया और फिर हिन्दुओं ने भी एकतरफा हमला किया| हमले दोनों तरफ से हुए लेकिन एक के बाद एक ! एक साथ दोनों तरफ से कुछ नहीं हुआ| तो फिर जो हुआ, उसे दंगा कैसे कहा जाए ? कहनेवाले कहते हैं कि पहले हमला हुआ और फिर जवाबी हमला हुआ| पहले … [Read more...] about कौनसे मुसलमानों को सबक सिखाया ?
अफगानिस्तान में ज़रा आहिस्ता-आहिस्ता
नवभारत टाइम्स, 2 मार्च 2002 : श्री हामिद करज़ई की भारत-यात्र जितनी फ़ीकी रही, उतनी फीकी शायद किसी भी राज्याध्यक्ष की नहीं रही| कोई राज्याध्यक्ष पहली बार भारत आए और अखबारों के मुखपृष्ठों पर उसके चित्र् न छपें, संपादकीय न लिखे जाएँ और खबरें भी कोने में दुबकी रहें तो क्या कहा जाएगा ? यही न, कि यात्र विफल हो गई| यदि यह यात्र सचमुच विफल रहती तो वह बड़ी खबर बनती| यह यात्र विफल नहीं … [Read more...] about अफगानिस्तान में ज़रा आहिस्ता-आहिस्ता