NavBharat Times, 21 Oct 2005 : हिंदी का कारवां किधर जा रहा है? वह आगे बढ़ रहा है या पीछे हट रहा है? साफ-साफ कुछ नहीं कहा जा सकता| इसका जवाब हां या ना में नहीं हो सकता| आगे बढ़ना और पीछे हटना परस्पर विरोधी क्रियाएं हैं| यदि ये एक साथ हों तो गाड़ी जहां खड़ी है, वहीं खड़ी रहेगी लेकिन हिंदी की गाड़ी खड़ी हुई नहीं है| वह सैकड़ों सड़कों पर एक साथ चल रही है| वह कहीं आगे बढ़ रही है और … [Read more...] about बड़े नेताओं के बीच हिंदी
Archives for 2005
राज्यपालों को बनाएं सच्चे महामहिम
NavBharat Times, 14 Oct 2005 : बिहार के मामले में उच्चतम न्यायालय ने सभी की फजीहत कर दी है| कोई भी नहीं बचा| क्या राष्ट्रपति, क्या प्रधानमंत्री, क्या मंत्रिमंडल, क्या राज्यपाल, क्या सत्तारूढ़ दल और क्या खुद उच्चतम न्यायालय ! राज्यपाल बूटासिंह के निर्णय को उच्चतम न्यायालय ने ‘असंवैधानिक’ जरूर कहा लेकिन बिहार विधानसभा को उसने पुनर्जीवित नहीं किया| इस अधर में लटके हुए फैसले से सभी … [Read more...] about राज्यपालों को बनाएं सच्चे महामहिम
राज्यपालों को बनाएं सच्चे महामहिम
NavBharat Times, 14 Oct 2005 : बिहार के मामले में उच्चतम न्यायालय ने सभी की फजीहत कर दी है| कोई भी नहीं बचा| क्या राष्ट्रपति, क्या प्रधानमंत्री, क्या मंत्रिमंडल, क्या राज्यपाल, क्या सत्तारूढ़ दल और क्या खुद उच्चतम न्यायालय ! राज्यपाल बूटासिंह के निर्णय को उच्चतम न्यायालय ने ‘असंवैधानिक’ जरूर कहा लेकिन बिहार विधानसभा को उसने पुनर्जीवित नहीं किया| इस अधर में लटके हुए फैसले से सभी … [Read more...] about राज्यपालों को बनाएं सच्चे महामहिम
चीन शाकाहारियों के लिए स्वर्गतुल्य है
Jansatta, 21 Aug 2005 : चीनियों के बारे में हम भारतीयों की धारणा यह है कि वे सब कुछ खा जाते हैं| कोई ऐसा प्राणी नहीं, जिसे वे न खाते हों| जमीन पर चलनेवाला हर प्राणी, पानी में तैरनेवाला हर प्राणी और आसमान में उड़नेवाला हर प्राणी चीनियों के पेट में आसानी से समा जाता है| चार बार चीन आकर और यहां दस दिन से एक माह तक प्रवास करके मैंने यह जान लिया कि भारतीयों की उक्त धारणा कमोबेश ठीक … [Read more...] about चीन शाकाहारियों के लिए स्वर्गतुल्य है
भारत बने अग्रगण्य या पिछलग्गू
NavBharat Times, 5 Aug 2005 : प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के बीच जो परमाणु समझौता हुआ है, उसके तकनीकी पक्षों पर विशेषज्ञों के बीच काफी बहस हो चुकी है| प्रधानमंत्री ने संसद में अमेरिका के साथ समान पारस्परिकता का आश्वासन देकर अनेक संशय दूर कर दिए हैं| लेकिन फिलहाल यह जरूरी है कि इस समझौते को विदेश नीति की तात्कालिक और दीर्घकालिक दृष्टि से देखा … [Read more...] about भारत बने अग्रगण्य या पिछलग्गू
भारत बने अग्रगण्य या पिछलग्गू
NavBharat Times, 5 Aug 2005 : प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के बीच जो परमाणु समझौता हुआ है, उसके तकनीकी पक्षों पर विशेषज्ञों के बीच काफी बहस हो चुकी है| प्रधानमंत्री ने संसद में अमेरिका के साथ समान पारस्परिकता का आश्वासन देकर अनेक संशय दूर कर दिए हैं| लेकिन फिलहाल यह जरूरी है कि इस समझौते को विदेश नीति की तात्कालिक और दीर्घकालिक दृष्टि से देखा … [Read more...] about भारत बने अग्रगण्य या पिछलग्गू
चिंतित चीन : आंखों देखा हाल
3 Aug 2005 : जब डॉ. मनमोहन सिंह वाशिंगटन में भारत-अमेरिका परमाणु-सहयोग के समझौते पर दस्तखत कर रहे थे, मैं चीन में था| शांघाइ में एकेडेमी ऑफ वर्ल्ड वाच, पेइचिंग विश्वविद्यालय और शांघाइ सामरिक संस्थान के विद्वानों के साथ गहन विचार-विमर्श हुआ| इन चीनी विद्वानों में से कुछ चीनी सरकार के सलाहकार भी थे| अपने दक्षिण एशियाई देशों के कुछ चुने हुए विशेषज्ञ भी थे| विषय था -दक्षिण एशिया … [Read more...] about चिंतित चीन : आंखों देखा हाल
जिन्ना तो सिर्फ मिस्टर जिन्ना थे
नवभारत टाइम्स, 29 जून 2005 : क्या यह जरूरी है कि मोहम्मद अली जिन्ना को हम देवता मानें या दानव ! देव और दानव के परे क्या कोई अन्य श्रेणी नहीं है, जिसमें गांधी, जिन्ना और सावरकर जैसे लोगों को रखा जा सके? क्या अपने इतिहास के प्रति हम थोड़े निस्संग, थोड़े निष्पक्ष, थोड़े तटस्थ हो सकते हैं? यदि साठ साल बाद भी हम में यह परिपक्वता नहीं आ सकी तो क्या हम किसी दिन अपने इतिहास को … [Read more...] about जिन्ना तो सिर्फ मिस्टर जिन्ना थे
वोटों की फसल काटने की जुगत
राष्ट्रीय सहारा, 23 जून 2005 : वोट की राजनीति जो भी करतब दिखाए, कम है| स्वतंत्र भारत में मज़हब के नाम पर आरक्षण दिया जाए, यह काबे में कुफ्र से कम नहीं| भारत का संविधान खुद को पंथ-निरपेक्ष या मज़हब-निरपेक्ष कहता है| इसीलिए अभी तक हर तरह के आरक्षण दिए गए लेकिन ‘महासेक्यूलर’ कम्युनिस्ट सरकारों की भी हिम्मत नहीं पड़ी कि वे मज़हब के नाम पर स्कूलों, कालेजों और सरकारी दफ्तरों में कुछ … [Read more...] about वोटों की फसल काटने की जुगत
वोटों की फसल काटने की जुगत
राष्ट्रीय सहारा, 23 जून 2005 : वोट की राजनीति जो भी करतब दिखाए, कम है| स्वतंत्र भारत में मज़हब के नाम पर आरक्षण दिया जाए, यह काबे में कुफ्र से कम नहीं| भारत का संविधान खुद को पंथ-निरपेक्ष या मज़हब-निरपेक्ष कहता है| इसीलिए अभी तक हर तरह के आरक्षण दिए गए लेकिन ‘महासेक्यूलर’ कम्युनिस्ट सरकारों की भी हिम्मत नहीं पड़ी कि वे मज़हब के नाम पर स्कूलों, कालेजों और सरकारी दफ्तरों में कुछ … [Read more...] about वोटों की फसल काटने की जुगत