दैनिक भास्कर, 29 अप्रैल 2004: जैसे चुनावी अजूबे इस बार घट रहे हैं, पिछले 13 चुनावों में नहीं घटे| सबसे पहला अजूबा तो चुनाव-ज्योतिष ही है| चुनाव-ज्योतिषियों ने पहले तो राजग को स्पष्ट बहुमत दिला दिया और कॉंग्रेस की लुटिया डुबो दी| अब आंशिक मतदानों के बाद वे खुद सिर के बल खड़े हो गए हैं| वे कह रहे हैं कि राजग और भाजपा दोनों डूब रहे हैं और कॉंग्रेस तैर रही है| वे यह नहीं बताते कि … [Read more...] about इस चुनाव के तीन अजूबे
Archives for April 2004
अमेरिकी शै पर इस्राइली अकड़
R Sahara, 23 April 2004 : इस्राइली प्रधानमंत्री एरियल शेरोन का एरियल पता नहीं कौनसे आसमान में टंगा हुआ है। पता नहीं, कौनसी दैवीय या राक्षसी अदृश्य शक्तियॉं इन्हें संकेत भेजती रहती हैं और वे ऐसे कारनाम कर गुजरते हैं, जिन्हें अंजाम देने के पहले कोई भी जिम्मेदार नेता हजार बार सोचेगा। यह ठीक है कि हमास नामक फलिस्तीनियों का आतंकवादी संगठन पूरे इस्राइल पर कब्जा करना चाहता है। … [Read more...] about अमेरिकी शै पर इस्राइली अकड़
लखपतियों से लदी लोकसभा
नवभारत टाइम्स, 19 अप्रैल 2004: अपनी सम्पत्ति की घोषणा कौन करना चाहता है? एक भिखारी भी नहीं| भिखारी को भी यह पसंद नहीं कि लोग जानें कि उसकी गुदड़ी में कितने नोट छिपे हुए हैं| अगर ऐसा है तो फिर नेतागण अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा क्यों पेश करने लगे? उन्हें करना पड़ रहा है, क्योंकि उन्हें चुनाव लड़ना है| हर उम्मीदवार के लिए यह आवश्यक हो गया है कि अपना नामांकन दाखिल करते समय वह शपथ-पत्र … [Read more...] about लखपतियों से लदी लोकसभा
लखपतियों से लदी लोकसभा
नवभारत टाइम्स, 19 अप्रैल 2004: अपनी सम्पत्ति की घोषणा कौन करना चाहता है? एक भिखारी भी नहीं| भिखारी को भी यह पसंद नहीं कि लोग जानें कि उसकी गुदड़ी में कितने नोट छिपे हुए हैं| अगर ऐसा है तो फिर नेतागण अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा क्यों पेश करने लगे? उन्हें करना पड़ रहा है, क्योंकि उन्हें चुनाव लड़ना है| हर उम्मीदवार के लिए यह आवश्यक हो गया है कि अपना नामांकन दाखिल करते समय वह शपथ-पत्र … [Read more...] about लखपतियों से लदी लोकसभा
क्या रखा है घोषणा-पत्रों में
18 April 2004 : यह ठीक है कि राजनीतिक दलों के घोषणा-पत्रों को आम मतदाता नहीं पढ़ता और चुनाव के बाद उन्हें दरी के नीचे सरका दिया जाता है लेकिन क्या इसीलिए उन पर बहस नहीं होनी चाहिए? यदि यह तर्क सही होता तो उन्हें तैयार करने में पार्टियॉं अपने बौद्घिक दिग्गजों को नहीं झोंकती और अपने सर्वोच्च नेताओं के हाथों उनका ढोल नहीं पिटवातीं| अगर वे महत्वहीन होते तो उनकी सचित्र खबरें नहीं … [Read more...] about क्या रखा है घोषणा-पत्रों में
क्या रखा है घोषणा-पत्रों में
18 April 2004 : यह ठीक है कि राजनीतिक दलों के घोषणा-पत्रों को आम मतदाता नहीं पढ़ता और चुनाव के बाद उन्हें दरी के नीचे सरका दिया जाता है लेकिन क्या इसीलिए उन पर बहस नहीं होनी चाहिए? यदि यह तर्क सही होता तो उन्हें तैयार करने में पार्टियॉं अपने बौद्घिक दिग्गजों को नहीं झोंकती और अपने सर्वोच्च नेताओं के हाथों उनका ढोल नहीं पिटवातीं| अगर वे महत्वहीन होते तो उनकी सचित्र खबरें नहीं … [Read more...] about क्या रखा है घोषणा-पत्रों में
बुश का वियतनाम
NavBharat Times, 11 April 2004 : अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश किस बुरी तरह फंस गए हैं| एराक में अमेरिका का जमे रहना जितना कठिन है, उससे भी ज्यादा पेचीदा हो गया है, उसमें से उसका बाहर निकल आना| बुश चार साल पहले जब राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे थे तो उनके भौंदूपन के अनेक किस्से मशहूर हो गए थे लेकिन माना यह जा रहा था कि ये किस्से उनके विरोधियों ने फैलाए हैं| अब तो उन्होंने अपनी कथनी … [Read more...] about बुश का वियतनाम
श्रीलंका में शांति का नया अवसर
R Sahara, 10 April 2004 : अच्छा हुआ कि श्रीलंका में चमत्कार नहीं हुआ| अगर हो जाता तो सारा मामला काफी बिगड़ सकता था| चमत्कार याने चंदि्रका कुमारतुंग की श्रीलंका फ्रीडम पार्टी को यदि स्पष्ट बहुमत मिल जाता तो श्रीलंका के तमिलों की शामत आ जाती| चंदि्रका राष्ट्रपति के रूप में तमिलों के प्रति अपेक्षाकृत अधिक कठोर रवैया अपनाती रही है, खासतौर से तब जबकि सरकार विरोधी दल की थी| यदि … [Read more...] about श्रीलंका में शांति का नया अवसर
श्रीलंका में शांति का नया अवसर
रा सहारा, 10 अप्रैल 2004: अच्छा हुआ कि श्रीलंका में चमत्कार नहीं हुआ| अगर हो जाता तो सारा मामला काफी बिगड़ सकता था| चमत्कार याने चंदि्रका कुमारतुंग की श्रीलंका फ्रीडम पार्टी को यदि स्पष्ट बहुमत मिल जाता तो श्रीलंका के तमिलों की शामत आ जाती| चंदि्रका राष्ट्रपति के रूप में तमिलों के प्रति अपेक्षाकृत अधिक कठोर रवैया अपनाती रही है, खासतौर से तब जबकि सरकार विरोधी दल की थी| यदि … [Read more...] about श्रीलंका में शांति का नया अवसर