Dainik Bhaskar, 12 Oct 2011: अन्ना टीम के लोगों ने जब से हिसार पर मुंह खोलना शुरू किया है, कई तात्कालिक और मूलभूत सवाल उठ खड़े हुए हैं। जैसे यह कि हिसार के उप-चुनावी दंगल में सीधे कूदकर क्या उन्होंने ठीक किया और यह मूलभूत प्रश्न भी कि क्या यह आंदोलन सिर्फ कागजी पुलाव बनकर रह जाएगा? क्या इसका हश्र जे पी आंदोलन से भी बुरा होगा? जहॉं तक हिसार के उप-चुनाव का प्रश्न है, अन्ना खुद … [Read more...] about अन्ना-आंदोलन कोरा गुब्बारा तो नहीं
Archives for 2011
आजाद थे हिंदी के महान योद्घा?
नई दिल्ली, 4 अक्तूबर| बिहार के मुख्यमंत्री और विलक्षण सांसद श्री भागवत झा आजाद के निधन पर डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने गहरा शोक व्यक्त किया है| श्री आजाद पिछले लगभग 50 साल से डॉ. वैदिक के अभिभावक (गार्जियन) थे| 45 साल पहले जब वैदिक ने अपने अंतरराष्ट्रीय राजनीति के शोधग्रंथ को हिंदी में लिखने का आग्रह किया तो उन्हें स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज् से निकाल दिया गया था| श्री आजाद ने … [Read more...] about आजाद थे हिंदी के महान योद्घा?
भाजपा को उस तीली की तलाश
Naya India, 04 Oct 2011 : भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में से क्या निकला, यह बताना भाजपा के नेताओं के लिए भी मुश्किल है। देश को आशा थी कि यह दिल्ली बैठक बड़ी जानदार सिद्ध होगी लेकिन वह होती, उसके पहले ही उसका दम निकल गया। बैठक के आरंभ से अंत तक नरेंद्र मोदी उस पर छाये रहे। मोदी आएंगें कि नहीं, नहीं आ रहे हैं तो क्यों नही आ रहे हैं, उनके नहीं आने का क्या असर होगा और जब आए ही … [Read more...] about भाजपा को उस तीली की तलाश
फलस्तीन: आशा की नई किरण
Naya India, 29 sept 2011 : फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने कबूतरों के पिंजरे में बिल्ली छोड़ दी है। उन्होंने वह काम कर दिखाया है, जो यासर अराफात जैसे चमत्कारी नेता भी नहीं कर सके। अब्बास ने संयुक्तराष्ट्र महासचिव बान-की-मून को एक औपचारिक अर्जी दे दी है और फलस्तीन को पूर्ण सदस्य बनाने का अनुरोध कर दिया है। पूर्ण सदस्य बनने का अर्थ है, पूर्ण संप्रभु राज्य की तरह मान्य हो … [Read more...] about फलस्तीन: आशा की नई किरण
मोदी बनाम राहुल : पटेल चले गांधी की राह
नया इंडिया, 17 सितंबर 2011 : नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी, दोनों को अमेरिकी विशेषज्ञ एक ही डंडे से हांक रहे हैं| दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है| दोनों को वे अभी से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर रहे हैं| मानो कि जैसे यह चुनाव अमेरिका के राष्ट्रपति का हो, न कि भारत के प्रधानमंत्री का| वे भूल तो नहीं गए कि भारत में प्रधानमंत्री का प्राय: चुनाव नहीं होता, नामजदगी होती है| … [Read more...] about मोदी बनाम राहुल : पटेल चले गांधी की राह
भाषा की प्रतिष्ठा पर ताकत का तर्क क्यों ?
Dainik Bhaskar, 14 Sept. 2011 : संयुक्तराष्ट्र संघ में अगर अब भी हिंदी नहीं आएगी तो कब आएगी ? हिंदी का समय तो आ चुका है लेकिन अभी उसे एक हल्के-से धक्के की जरूरत है| भारत सरकार को कोई लंबा चौड़ा खर्च नहीं करना है, उसे किसी विश्व अदालत में हिंदी का मुकदमा नहीं लड़ना है, कोई प्रदर्शन और जुलूस आयोजित नहीं करने हैं| उसे केवल डेढ़ करोड़ डॉलर प्रतिवर्ष खर्च करने … [Read more...] about भाषा की प्रतिष्ठा पर ताकत का तर्क क्यों ?
गुजरात के असली हत्यारे कब तक पकड़े जाएंगे
नया इंडिया, 14 सितंबर 2011 : एहसान जाफरी के मामले में उच्चतम न्यायालय ने जो निर्णय किया है, उस पर कांग्रेस और भाजपा दोनों की प्रतिकि्रया सही मालूम पड़ती हैं| कांग्रेस का यह कहना सही है कि उच्चतम न्यायालय ने नरेन्द्र मोदी और उनके साथियों को दोषमुक्त घोषित नहीं किया है| अब सारे मामले पर अहमदाबाद की निचली अदालत विचार करेगी| वह यह तय करेगी कि अभी तक जितनी जॉंच रपटें आई हैं, उनमें … [Read more...] about गुजरात के असली हत्यारे कब तक पकड़े जाएंगे
आतंक के दो मसीहाओं का द्वंन्द्व
10 सितंबर 2011 : 11 सितंबर एक तारीख है लेकिन यह दुनिया में वैसे ही प्रसिद्घ हो गई है, जैसे 25 दिसंबर या 1 जनवरी! 11 सितंबर का मतलब वह दिन है, जब न्यूयार्क के ट्रेड टॉवर और वाशिंगटन के पेन्टेगॉन-भवन पर हवाई हमला हुआ था| इस हमले को हुए दस साल हो गए| इन दस वर्षों में अमेरिका और दुनिया ने क्या खोया और क्या पाया, इसका लेखा-जोखा जरूरी है| इस हमले ने यह सिद्घ किया कि राज्य-जैसी … [Read more...] about आतंक के दो मसीहाओं का द्वंन्द्व
भारत-बांग्ला : अभी कुछ कदम और बाकी
नया इंडिया, 9 सितंबर 2011 : अंतरराष्ट्रीय राजनीति के इतिहास में भारत और बांग्लादेश के संबंध एकदम अनूठे रहे हैं| दुनिया में ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं जबकि कोई राष्ट्र अपने पड़ौस में एक नए राष्ट्र को जन्म दे दे और उस पर कोई अहसान नहीं जताए या उसके साथ दादागीरी न करे| बांग्लादेश के कई तत्वों ने समय-समय पर भारत को तरह-तरह से चोट पहुंचाने की कोशिश जरूर की, इसके बावजूद 40 साल में … [Read more...] about भारत-बांग्ला : अभी कुछ कदम और बाकी
खूनी हमले और बेबस सरकार
दिल्ली उच्च न्यायालय के पास हुए विस्फोट ने एक बार फिर भारत की दुखती रग पर उंगली रख दी है| संसद या उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय कोई साधारण बाजार या भीड़भरे रेल्वे स्टेशन नहीं हैं| ये भारतीय राष्ट्र-राज्य के स्नायु-केंद्र हैं| अगर इन स्थानों की रक्षा करने में भी हम असमर्थ हैं तो भारत मे राज्य और सरकार के होने का ही क्या अर्थ रह जाता है ? लाखों पुलिसवालों और फौजियों का आखिर … [Read more...] about खूनी हमले और बेबस सरकार