राष्ट्रीय सहारा, 14 नवम्बर 2004 : देश में कोई बड़े से बड़ा राजनेता गिरफ्तार हो जाए तो भी किसी को सदमा नहीं पहुंचता लेकिन अगर किसी धर्मध्वजी पर उंगली भी उठती है तो लोग बेचैन हो जाते हैं| कॉंची कामकोटि के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती की गिरफ्तारी ऐसा ही सदमा है| गिरफ्तारी और लंबे मुकदमों के बावजूद हमारे नेतागण अक्सर बरी हो जाते हैं | उम्मीद की जाती है कि धर्मध्वजी भी इसी तरह बरी … [Read more...] about साधुओं की फिसलपट्टी
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साधुओं की फिसलपट्टी
राष्ट्रीय सहारा, 14 नवम्बर 2004 : देश में कोई बड़े से बड़ा राजनेता गिरफ्तार हो जाए तो भी किसी को सदमा नहीं पहुंचता लेकिन अगर किसी धर्मध्वजी पर उंगली भी उठती है तो लोग बेचैन हो जाते हैं| कॉंची कामकोटि के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती की गिरफ्तारी ऐसा ही सदमा है| गिरफ्तारी और लंबे मुकदमों के बावजूद हमारे नेतागण अक्सर बरी हो जाते हैं | उम्मीद की जाती है कि धर्मध्वजी भी इसी तरह बरी … [Read more...] about साधुओं की फिसलपट्टी
बुश की जीत का रहस्य क्या है
Dainik Bhaskar, 10 Nov 2004 : अगर जॉर्ज बुश का महिमा-मंडन करना हो तो कहा जा सकता है कि जैसी जीत बुश को मिली, आज तक अन्य किसी को नहीं मिली| बुश पहले राष्ट्रपति हैं, जिन्हें 5 करोड़ 86 लाख वोट मिले| रेगन जैसे लोकपि्रय अभिनेता-राष्ट्रपति को भी 1984 में केवल 5 करोड़ 45 लाख वोट मिले थे| इसके अलावा पिछले 80 साल में बुश ऐसे पहले रिपब्लिकन राष्ट्रपति हैं, जिनका प्रतिनिधि सदन और सीनेट … [Read more...] about बुश की जीत का रहस्य क्या है
अफगानिस्तान का अपूर्व चुनाव
NavBharat Times, 6 Nov 2004 : अफगानिस्तान के सर्वोच्च शासक को जनता चुने, यह अपने आप में अजूबा है। हामिद करज़ई को अपना राष्ट्रपति चुनकर अफगानों ने नए इतिहास की नींव रखी है। अब से लगभग ढाई सौ साल पहले (1747) आधुनिक अफगानिस्तान के संस्थापक अहमद शाह अब्दाली भी चुने हुए शासक थे लेकिन उन्हें कंधार में कबीलों के मुखियाओं ने गद्दी पर बैठाया था, आम जनता ने नहीं। अफगान-इतिहास की यह पहली … [Read more...] about अफगानिस्तान का अपूर्व चुनाव
चीनियों से हुई काम की बातें
R Sahara, 4 Nov 2004 : इस बार शंघाई में चीनी विद्वानों के साथ जो गहन सम्वाद हुआ, उसके पहले दौर में ही अनेक रचनात्मक संकेत मिल गए| भारत और चीन के बीच छोटे-मोटे अनेक मतभेद हैं| उनके बावजूद चीनी विद्वानों ने कोई ऐसी टिप्पणी नहीं की कि भारतीय विद्वानों को उसका कड़ा प्रतिवाद करना पड़ता| सच्चाई तो यह है कि तीन दिन की धुऑंधार बहस में से सहमति के कई नए बिंदु उभरे, उनका त्वरित असर चीनी … [Read more...] about चीनियों से हुई काम की बातें
आखिर मुशर्रफ चाहते क्या हैं?
नवभारत टाइम्स, 30 अक्तूबर 2004: जनरल परवेज़ मुशर्रफ से ऐसी भूल कैसे हो गई? हैं तो वे फौज के जनरल लेकिन कूटनीति में वे बड़े-बड़ों को अब तक पानी पिलाते रहे हैं| इस बार वे गच्चा कैसे खा गए? उनसे दो भूलें हुईं| पहली, उन्होंने जल्दबाजी की और दूसरी, खुद पहल की| अपने गले में घंटी बॉंध ली| जम्मू-कश्मीर के बारे में जो प्रस्ताव उन्होंने खुद उछाला, वह अगर किसी अन्य से उछलवाते तो उसकी … [Read more...] about आखिर मुशर्रफ चाहते क्या हैं?
भारत-पाक नई लीक
Nav Bharat Times, 29 Sept 2004 : डॉ. मनमोहनसिंह और जनरल मुशर्रफ की मुलाकात को निराशा के चश्मे से देखना हो तो उसमें अनेक खामियॉं खोजी जा सकती हैं| दोनों नेताओं पर आरोप लगाए जा सकते हैं| यहॉं इस्लामाबाद में कुछ पाकिस्तानी अखबार कह रहे हैं कि मुशर्रफ फिसल गए| उन्होंने अपने संयुक्तराष्ट्र भाषण में, भारतीय प्रधानमंत्री से बातचीत में और संयुक्त वक्तव्य में भी एक दम समझौतावादी रवैया … [Read more...] about भारत-पाक नई लीक
एक अबूझ पहेली थे नरसिंहराव
दैनिक भास्कर, 25 दिसम्बर, 2004 : नरसिंहरावजी से अधिक अभागा प्रधानमंत्री कौन रहा होगा? लोग उन्हें न तो जीते जी समझ पाए और न ही मरने के बाद| वे एक अबूझ पहेली थे| उनके बारे में क्या-क्या छवियाँ बनी हुई हैं| मौनी बाबा, अकर्मण्य -दीर्घसूत्री, भ्रष्टाचार-पे्रमी, निर्मम, कुटिल आदि-आदि! प्रधानमंत्रियों को जो सम्मान मिलता है, वह उन्हें न तब मिला और न अब मिल रहा है| वे चाहते तो जरूर … [Read more...] about एक अबूझ पहेली थे नरसिंहराव
मुशर्रफ वर्दी उतारें या न उतारें
NavBharat Times, 18 Sept 2004 : इस समय पाकिस्तान में सबसे गर्म मुद्दा क्या है? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वह मुद्दा भारत-पाक संबंध नहीं है बल्कि यह है कि जनरल मुशर्रफ इस साल के अंत तक अपनी वर्दी उतारेंगे या नहीं? वर्दी उतारने का मतलब क्या है? वर्दी उतारना मतलब अपना फौजी पद छोड़ना| याने अब उनके पास केवल राष्ट्रपति पद रहेगा या सर्वोच्च सेनापति पद भी? यह सवालों का सवाल है| … [Read more...] about मुशर्रफ वर्दी उतारें या न उतारें
भारत-पाक निराशा निराधार
R Sahara, 10 Sept 2004 : दिल्ली-वार्ता से जो निराश हैं, उन्हें आगरा-वार्ता को याद करना चाहिए| आगरा के पहले कितने हवाई किले बॉंधे गए थे| सब ढेर हो गए| इस बार तिनका-तिनका चिनकर वार्ता का घोंसला बनाया गया था| वह अपनी जगह जमा हुआ है| यह क्या कम बड़ी उपलब्धि है? आगरा-वार्ता दोनों देशों के शासनाध्यक्षों के बीच हुई थी और दिल्ली-वार्ता जिन लोगों के बीच हुई वे केवल विदेश सचिव और … [Read more...] about भारत-पाक निराशा निराधार